चातुर्मास में खान-पान पर रखना चाहिए संयम, इस दौरान एक ही स्थान पर रुककर करनी चाहिए साधना

इस बार 20 जुलाई, मंगलवार से चातुर्मास का प्रारंभ होगा, जो 16 नवंबर को समाप्त होगा। चातुर्मास के अंतर्गत श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक मास आते हैं।

उज्जैन. चातुर्मास में मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। इस दौरान लोगों को खान-पान से संबंधित विशेष सावधानी भी बरतने की सलाह दी जाती है, साथ ही इस समय धार्मिक गतिविधियां भी तेज हो जाती है। आगे जानिए चातुर्मास से जुड़ी खास बातें…

धार्मिक दृष्टिकोण से चातुर्मास
धार्मिक दृष्टिकोण से चातुर्मास का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में चार महीने के लिए विश्राम करते हैं। ऐसे में सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। चातुर्मास में विवाह या अन्य संस्कार, गृह प्रवेश जैसे अन्य मांगलिक कार्य रुक जाते हैं।

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एक स्थान पर साधना के लिए श्रेष्ठ है चातुर्मास
चातुर्मास का समय साधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। हालांकि साधना के संचरण नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि एक स्थान पर ही बैठकर साधना करनी चाहिए। इन चार महीनों में सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह में जो व्यक्ति भागवत कथा, भगवान शिव का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।

खान-पान पर रखें संयम
चातुर्मास जिसमें सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक का माह आता है उसमें खान-पान और व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए। दरअसल इन 4 महीनो में व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है। इससे अलावा भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इस समय पानी को ऊबालकर पीना ज्यादा लाभकारी होता है। 

इन चीजों का करें परहेज
चातुर्मास मास का पहला माह सावन आता है। नियमानुसार इस महीने हरी पत्तेदार सब्जियों को नहीं खाना चाहिए। दूसरा माह भाद्रपद आता है। इस माह दही खाने से बचना चाहिए। चातुर्मास का तीसरा माह अश्विन होता है जिसमें दूध से परहेज बाताया गया है। चातुर्मास का अंतिम माह कार्तिक में दालों का सेवन नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में खानपान से जुड़े ये नियम अच्छी सेहत के लिए उत्तम होते हैं।

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