Goga Panchami 2022: हिंदू धर्म में कई लोकदेवताओं की मान्यता है। ऐसे ही एक लोक देवता हैं गोगादेव। हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को गोगा पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 16 अगस्त, मंगलवार को है। इसके 4 दिन बाद गोगा नवमी का पर्व भी मनाया जाता है।
उज्जैन. हर साल की तरह इस साल भी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को गोगा पंचमी (Goga Panchami 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 16 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा। गोगादेव एक लोकदेवता हैं ऐसी मान्यता है कि गोगादेव की पूजा करने से सर्पदंश से बचा जा सकता है। इसलिए इस दिन नागदेवता की पूजा करने का भी विधान है। ये त्योहार राजस्थान, मध्यप्रदेश के अलावा आस-पास के कुछ क्षेत्रों में ही मनाया जाता है। गोगा पंचमी के 3 दिन बाद गोगा नवमी का पर्व भी मनाया जाता है। आगे जानिए गोगा पंचमी से जुड़ी खास बातें…
इस विधि से करें गोगादेव की पूजा (worship method of gogadev)
गोगादेव की पूजा के लिए किसी साफ दीवार पर गेरू से पुताई करें और इसके बाद दूध में कोयला मिलाकर एक घोल तैयार करें। इस घोल से दीवार पर एक चौक उसके अंदर अन्दर पांच सर्प के चिह्न बनाएं। इन पर पानी, कच्चा दूध, चावल, बाजरा, आटा, घी, चीनी आदि चीजें चढ़ाएं। मान्यता है कि गोगा देव की पूजा करने से संतान की उम्र लंबी होती है और उसकी सेहत भी अच्छी रहती है। इनकी पूजा से नि:संतान स्त्रियों को संतान प्राप्ति के योग भी बनते हैं।
जानिए कौन थे गोगाजी? (Know who was gogadev)
- गोगादेव से जुड़ी एक लोक कथा भी है उसके अनुसार, गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में राजस्थान के चुरू नामक स्थान पर चौहान वंश के राजपूत वंश में हुआ था।
गोगाजी गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य थे।
- लोककथाओं के अनुसार, गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। इन्हें गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहिर वीर, राजा मण्डलिक व जाहर पीर के नामों से भी पुकारा जाता है। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को प्रथम माना गया है।
- सैकड़ों वर्ष बीतने के बाद भी गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर स्थित है। यहां गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति स्थापित है।
- उनका जन्मस्थान पर आज भी सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग सर झुकाने के लिए दूर-दूर से आते हैं। यह एक ऐसा स्थान है जो हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
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