
उज्जैन. पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती है। पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति के सभी जाने -अनजाने में किए गए पापों का प्रायश्चित होता है।
इस व्रत की विधि इस प्रकार है...
- इस व्रत का पालन दशमी तिथि (15 अक्टूबर, शुक्रवार) के दिन से ही करना चाहिए। दशमी तिथि पर सात धान्य अर्थात गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इन सातों धान्यों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है।
- जहां तक संभव हो दशमी तिथि और एकादशी तिथि दोनों ही दिनों में कम से कम बोलना चाहिए। दशमी तिथि को भोजन में तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए और पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
- एकादशी तिथि पर सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प अपनी शक्ति के अनुसार ही लेना चाहिए यानी एक समय फलाहार का या फिर बिना भोजन का।
- संकल्प लेने के बाद घट स्थापना की जाती है और उसके ऊपर श्रीविष्णुजी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को रात्रि में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।
- इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि (17 अक्टूबर, रविवार) की सुबह ब्राह्मणों को अन्न का दान और दक्षिणा देने के बाद होता है।
पापाकुंशा एकादशी (Papankusha Ekadashi 2021) की कथा
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर एक क्रूर बहेलियां रहता था। उसने अपनी सारी जिंदगी हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति में व्यतीत कर दी। जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि- कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है, हम तुम्हें कल लेने आएंगे। यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा। महर्षि अंगिरा ने बहेलिये से प्रसन्न होकर कहा कि- तुम अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करना। बहेलिये ने महर्षि अंगिरा के बताए हुए विधान से विधि पूर्वक पापांकुशा एकादशी का व्रत किया और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया।
ये उपाय करें
1. पापांकुशा एकादशी पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा का अभिषेक केसर युक्त गाय के दूध से करें। साथ ही लक्ष्मी-विष्णु मंत्रों का जाप भी करें।
2. किसी विष्णु मंदिर में केसरिया ध्वज दान करें और भगवान को पीले फूल चढ़ाएं।
3. किसी ब्राह्मण को पीले कपड़े और साबूत हल्दी, सोने का मोती आदि चीजों का दान करें।