Sankashti Chaturthi May 2022: 19 मई को करें ये आसान उपाय, भगवान श्रीगणेश करेंगे आपके संकट दूर

हर महीने के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए पूजा व व्रत किया जाता है। इस बार 19 मई, गुरुवार को ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। इस दिन संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi May 2022) का व्रत किया जाएगा।
 

Manish Meharele | Published : May 18, 2022 1:55 PM IST

उज्जैन. पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि 18 मई को रात 11:36 से शुरू होगी, जो 19 मई को रात 08:23 तक रहेगी। चतुर्थी तिथि 19 मई को सूर्योदय के समय रहेगी, इसलिए ये व्रत इसी दिन करना श्रेष्ठ रहेगा। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश के एकदंत स्वरूप की पूजा करने का विधान है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा के साथ-साथ कुछ उपाय भी किए जाएं तो हर तरह की परेशानी से बचा जा सकता है। आगे जानिए संकष्टी चतुर्थी पर कौन-से उपाय आप कर सकते हैं…

 

1. संकष्टी चतुर्थी की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान श्रीगणेश के एकंदत स्वरूप की पूजा करें। भगवान श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाएं। दीपक लगाएं और पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद किसी सुहागिन ब्राह्मण स्त्री को हरी साड़ी और हरी चूड़ियां दान करें। हरा रंग श्रीगणेश को विशेष रूप से प्रिय माना जाता है। इस उपाय से घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी।

2. संकष्टी चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश के किसी मंदिर में केसरिया ध्वज लगवाएं और संभव हो तो चोला भी चढ़वाएं। ऐसा करने से आपकी परेशानियां दूर हो सकती हैं। इसके बाद श्रीगणेश को यथाशक्ति केले का भोग लगाएं, बाद में ये भोग भक्तों में बांट दें। ये भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने का बहुत छोटा मगर अचूक उपाय है।

3. 19 मई की सुबह किसी गणेश मंदिर में जाकर वहां की साफ-सफाई करें और कुशआ के आसन पर बैठकर नीचे लिखे किसी भी एक मंत्र का जाप कम से कम 11 माला करें। जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं। ये हैं भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के मंत्र-
- ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात.
- ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा
- दुर्वा अर्पित करते हुए मंत्र बोलें 'इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः'
- सुमुखश्च एकदंतश्च कपिलो गजकर्णक:
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक: 
धुम्रकेतुर गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:
द्वादशैतानि नामानि य: पठेचशृणुयादपि 
- एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्


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