भगवान शिव का प्रिय मास सावन 14 जुलाई, गुरुवार से शुरू होने वाला है, लेकिन इसके पहले ही 11 जुलाई को शिव पूजा के लिए बहुत ही शुभ योग बनने जा रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार, 11 जुलाई को सोमवार और प्रदोष तिथि का योग होने से सोम प्रदोष (Som Pradosh July 2022) का व्रत किया जाएगा।
उज्जैन. त्रयोदशी तिथि और सोमवार दोनों ही भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए इनका योग शिव पूजा के लिए बहुत ही खास महत्व है। इसके अलावा इस दिन नक्षत्रों के योग से 3 शुभ योग भी बन रहे हैं। इस तरह सावन से पहले शिव पूजा का इतना शुभ योग सभी के लिए विशेष फल देना वाला रहेगा। इस दिन व्रत रखकर शाम को विधि-विधान से शिव पूजा करनी चाहिए। आगे जानिए प्रदोष व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
जानिए सोम प्रदोष पर कौन-कौन से योग बन रहे हैं (Som Pradosh July 2022 Shub yog)
ज्योतिषियों के अनुसार, 11 जुलाई सोमवार को सूर्योदय अनुराधा नक्षत्र में होगा, जो सुबह 8 बजे तक रहेगा, इसके बाद ज्येष्ठा नक्षत्र रात अंत तक रहेगा। सोमवार को पहले अनुराधा नक्षत्र होने से मानस और उसके बाद ज्येष्ठा नक्षत्र होने से पद्म नाम के 2 शुभ योग इस दिन बन रहे हैं। साथ ही इस दिन सर्वार्थसिद्धि नाम का एक अन्य शुभ योग भी बन रहा है।
ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त (Som Pradosh July 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 11 जुलाई को सुबह11.13 से शुरू होकर 12 जुलाई की सुबह 07.46 तक रहेगी। चूंकि प्रदोष व्रत शाम को किया जाता है, इसलिए 11 जुलाई को ही प्रदोष व्रत किया जाना श्रेष्ठ रहेगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रात 7:22 से 9:24 तक है।
इस विधि से करें सोम प्रदोष व्रत (Som Pradosh June 2022 Puja Vidhi)
सोमवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत रखें। शाम के ऊपर बताए गए शुभ मुहूर्त में शिव मंदिर में या घर पर ही शिवजी की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर पूजा करें। पहले शिवलिंग का अभिषेक स्वच्छ जल से करें फिर गाय के दूध से स्नान करवाएं। एक बार पुन: स्वच्छ जल से स्नान करवाएं। शमी का पत्ता, सफेद फूल, बेलपत्र, भांग, धतूरा, आदि चीजें अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और भोलेनाथ की आरती करें।
भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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