अपने भक्तों को विजय दिलाती हैं देवी कालरात्रि, सप्तमी तिथि पर करें इनकी पूजा

महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। मां कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Oct 4, 2019 3:24 AM IST / Updated: Oct 04 2019, 08:55 AM IST

नवरात्रि की सप्तमी तिथि (5 अक्टूबर) को मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि की भक्ति से हमारे मन का हर प्रकार का भय नष्ट होता है। जीवन की हर समस्या को पलभर में हल करने की शक्ति प्राप्त होती है। शत्रुओं का नाश करने वाली मां कालरात्रि अपने भक्तों को हर परिस्थिति में विजय दिलाती हैं।

इस विधि से करें मां कालरात्रि की पूजा
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता कालरात्रि की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता कालरात्रि सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

ध्यान मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

अर्थात- मां दुर्गा के सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र गोल हैं। इनकी नाक से अग्रि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गधा है।

सातवे दिन देवी कालरात्रि की ही पूजा क्यों की जाती है?
देवी कालरात्रि का स्वरूप बहुत विकराल है। इनके मस्तक पर शिवजी की तरह तीसरा नेत्र है। तीसरा नेत्र हमारे अंतर्मन का प्रतीक है। इसका सीधा सा अर्थ है कि जब हम भक्ति के मार्ग पर चलते हुए ईश्वर के करीब पहुंच जाते हैं तो तीसरी आंख यानी अंतर्मन ही हमें सही रास्ता दिखाता है। जब किसी साधक के साथ ऐसी स्थिति हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि वह भक्ति के अंतिम पड़ाव की ओर है, जहां से उसे सिद्धि प्राप्त हो सकती है।

5 अक्टूबर के शुभ मुहूर्त
सुबह 7.30 से 9 बजे तक- शुभ
दोपहर 12 से 1.30 बजे तक- चर
दोपहर 1.30 से 3 बजे तक- लाभ
दोपहर 3 से 4.30 बजे तक- अमृत
 

Share this article
click me!