गोकशी पर होगी 10 वर्ष की कैद, पब्लिक प्लेस पर चिपकेंगे आरोपियों के पोस्टर, योगी सरकार ने बनाए ये कड़े नियम

यूपी की योगी सरकार ने गोकशी के मामले में सख्त रवैया अख्तियार किया है . सूबे में 1956 में लागू हुए गोवध निवारण अधिनियम में बदलाव कर सजा को और सख्त करने का फैसला योगी सरकार ने किया है। सात साल तक के कारावास को आधार बनाकर गोकश जमानत पर रिहा न हो सकें, इसलिए कारावास को बढ़ाकर अधिकतम दस वर्ष, जबकि जुर्माने को तीन से बढ़ाकर पांच लाख रुपये तक कर दिया गया है

Asianet News Hindi | Published : Jun 10, 2020 7:43 AM IST

लखनऊ(Uttar Pradesh). यूपी की योगी सरकार ने गोकशी के मामले में सख्त रवैया अख्तियार किया है . सूबे में 1956 में लागू हुए गोवध निवारण अधिनियम में बदलाव कर सजा को और सख्त करने का फैसला योगी सरकार ने किया है। सात साल तक के कारावास को आधार बनाकर गोकश जमानत पर रिहा न हो सकें, इसलिए कारावास को बढ़ाकर अधिकतम दस वर्ष, जबकि जुर्माने को तीन से बढ़ाकर पांच लाख रुपये तक कर दिया गया है। अब यूपी में गोकशी और गोतस्करी से जुड़े अपराधियों के फोटो भी सार्वजनिक रूप से चस्पा किए जाएंगे।

बता दें कि मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को कैबिनेट की बैठक वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हुई। इसमें विभिन्न विभागों के चौदह प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। इन प्रस्तावों में सबसे अहम गो-वध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 के प्रारूप को भी स्वीकृति दे दी गई। बैठक में सीएम योगी ने कहा कि इस अध्यादेश का उद्देश्य उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण अधिनियम, 1955 को और अधिक संगठित व प्रभावी बनाना है। गोवंशीय पशुओं की रक्षा और गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों को पूरी तरह रोकना है।

अब गोकशी करने वालों को होगी 10 साल की सजा 
अभी तक गो-वध निवारण अधिनियम में गोकशी की घटनाओं के लिए सात वर्ष की अधिकतम सजा का प्राविधान है। इससे ऐसी घटनाओं में शामिल लोगों की जमानत हो जाने के मामले बढ़ रहे हैं। जमानत के बाद उनके फिर ऐसी घटनाओं में संलिप्त होने के मामले सामने आ रहे हैं। इसे देखते हुए ही अधिनियम की विभिन्न धाराओं में संशोधन करते हुए अधिकतम सजा दस वर्ष और जुर्माना अधिकतम पांच लाख रुपये किया जा रहा है। योगी कैबिनेट की बैठक में इस पर फैसला लिया गया है . 

गो तस्करी में शामिल वाहनों के चालक व मालिक भी होंगे आरोपी 
योगी सरकार द्वारा बनाए गए नए नियमों के तहत गो तस्करी में शामिल वाहनों के चालक, ऑपरेटर और स्वामी भी तब तक इस इसी अधिनियम के तहत आरोपित किए जाएंगे, जब तक यह साबित न हो जाए कि उनकी जानकारी के बिना के बिना वाहन का इस्तेमाल ऐसी घटना में किया गया है। कब्जे में ली गईं गायों और उसके गोवंशों के भरण-पोषण का एक वर्ष तक का खर्च भी अभियुक्त से ही लिए जाएगा।

1956 में यूपी में लागू हुआ था अधिनियम 
गोवध निवारण अधिनियम 1955 प्रदेश में छह जनवरी 1956 को लागू हुआ था। वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी। वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में अधिनियम में संशोधन किया गया। नियमावली का वर्ष 1964 व 1979 में संशोधन हुआ लेकिन, अधिनियम में कुछ ऐसी शिथिलताएं बनी रहीं, जिसके कारण यह अधिनियम जन भावना की अपेक्षानुसार प्रभावी ढंग से कार्यान्वित न हो सका। प्रदेश के अलग-अलग भागों में अवैध गोवध एवं गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन की शिकायतें मिलती रहीं। इन्हें रोकने को ही सरकार ने अधिनियम में एक और संशोधन का फैसला किया।
 

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