पुलिस के आंकड़ों पर नजर डाले तो एक महीने में 100 से अधिक किशोरियां प्रेम जाल मे फंसकर अपने घर की दहलीज छोड़ चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक, जिले से रोजाना तीन से चार लड़कियां मां-बाप को बिना कुछ बताए घरों की दहलीज छोड़ रही हैं। यह काफी भयावह आंकड़ा है। इसके पीछे मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग काफी हद तक जिम्मेदार मानी जा रही है।
धर्मेंद्र राजपूत
लखीमपुर खीरी : पढ़ाई, लिखाई और खेलने कूदने की उम्र में किशोरियां गलत रास्ते पर जा रही है। पुलिस के आंकड़ों पर नजर डाले तो 14 साल से 17 साल की उम्र की अमूमन तीन लड़कियां प्रेम जाल में फंसकर घर की दहलीज छोड़ देती है। इससे जहा समाज में उनकी व परिवार की बदनामी होती है। वही परिवार के लोग समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं बचते है।
मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग है लड़कियों के घर छोड़ने की असल वजह
हर मां बाप का सपना होता है कि उसका बच्चा बेटा हो या बेटी, पढ़ लिखकर अपने पैरो पर खड़ा हो। वह अच्छे स्कूलों में दाखिला लेकर पढ़ाई कर सके। पूरे जीवन की कमाई उसकी पढ़ाई लिखाई पर खर्च करते हैं, लेकिन भागदौड़ कि इस जिंदगी में वह अपने बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते। उनके साथ उठना बैठना और बातचीत कर उनकी दिक्कतों से रूबरू नही हो पाते हैं। बच्चे भी अपनी बात खुलकर मां व बाप से नहीं कह पाते। इससे बच्चे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं। पुलिस के आंकड़ों पर नजर डाले तो एक महीने में 100 से अधिक किशोरियां प्रेम जाल मे फंसकर अपने घर की दहलीज छोड़ चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक, जिले से रोजाना तीन से चार लड़कियां मां-बाप को बिना कुछ बताए घरों की दहलीज छोड़ रही हैं। यह काफी भयावह आंकड़ा है। इसके पीछे मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग काफी हद तक जिम्मेदार मानी जा रही है।
14 से लेकर 25 साल तक के लोगों पर पड़ रहा खास असर
अक्सर देखा जा रहा है कि बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक आपसी बातचीत करने के बजाय मोबाइल पर ही अधिक समय बिताते है। मोबाइल पर कुछ सोशल साइटों पर जमकर अश्लीलता परोसी जाती है, जिसे देखकर बच्चों की मानसिकता दूषित होती है। इसके अलावा 14 से लेकर 25 साल तक के बच्चे और युवाओं में सेल्फी लेकर सोशल साइटों पर अपलोड करने का भी प्रचलन तेज हुआ है। सोशल साइट से बच्चे एक दूसरे के सम्पर्क में आ जाते है और उनके बीच बातचीत शुरू हो जाती है। कुछ बिगडैल युवा किशोरियों को बड़े बड़े सपने दिखाते हैं। वह उनके प्रेम जाल में फंसकर घर की दहलीज लांघ जाती है। बाद में उन्हे पछतावे के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता है।
अभिभावक बच्चो के साथ दोस्तों की तरह करें व्यवहार
शहर के प्रमुख मनोचिकत्सक डा. दिनेश दुआ बताते हैं कि किशोरियों के घर की दहलीज छोड़ने के पीछे सबसे अहम रोल मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग है। 14 से 18 साल के बीच की उम्र बच्चों के लिए काफी अहम होती है। सोशल साइट के जरिए बच्चे गलत लोगों के संपर्क में आ जाते हैं। इससे उन्हें छेड़खानी का मौका मिलता है। माता-पिता को बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। ताकि बच्चे अपने मन की बात कह सके। बच्चों के साथ बैठे और खेले। उनके साथ दोस्ताना रवैया अपनाते हुए बातचीत करें। जिससे बच्चों के बीच बैठा माता-पिता का डर और हिचक दूर हो सके। अगर उसकी किसी से फ्रेंडशिप हो गई है तो वह बेहिचक पिता से नहीं तो अपनी मां से बता सकती है। फिर परिवार के लोग आपसी सहमति से कोई रास्ता निकाल सकते हैं। इस तरह ही बढ़ रही इन घटनाओं को रोका जा सकता है।