आगरा के इस गांव में होती है 'बमों की खेती', जगह-जगह तिरपाल पर पड़े रहते हैं सुतली बम

यूपी के आगरा जिले में धौर्रा गांव है, जहां घर-घर में बारुद होने के साथ-साथ पटाखे बनते है। हर घर का बच्चा और महिलाएं मिनटों में ही सुतली बम को तैयार कर लेती है। गांव में अवैध रूप से कारोबार हो रहा है और सभी बराबर जिम्मेदार है। 

आगरा: उत्तर प्रदेश की ताजनगरी आगरा में एक गांव ऐसा भी है, जहां बमों की खेती होती है या फिर यूं कहें कि घर-घर में बारुद रहता है। यहां पर सभी के घर में बारुद होने के साथ-साथ पटाखा बनाते है फिर चाहे छोटे हो या घर के बड़े। इस अवैध कारोबार में सभी की बराबर हिस्सेदारी रहती हैं। यह लोग सुतली बम तैयार करते हैं। इस गांव में अहम बात यह है कि गांव में सिर्फ चार परिवार ऐसे हैं, जिनके पास पटाखा बनाने का लाइसेंस है। इतना ही नहीं यहां से कुछ दूर पर नगला खरगा इलाका है, वहां भी हर घर में पटाखा तैयार होता हैं।

ग्राहकों को बच्चे गिनकर देते है पटाखे
जानकारी के अनुसार शहर से सिर्फ बीस किलोमीटर की दूरी पर धौर्रा गांव है। यहां के खेतों में लोग बाइक का प्रयोग कर पटाखे बनाने का सामान ले जाते है। उसके बाद खेत में बड़ा से तिरपाल बिछाकर देसी पटाखे धूप में रखते है। वहीं दूसरी ओर महिलाएं और बच्चे खेत के एक कोने में पटाखों पर कागज चिपकाते है। अगर इस बीच कोई ग्राहक आता है तो बच्चे पटाखे गिनकर भी देते है। बच्चों के साथ-साथ महिलाओं के हाथ बारुद में सने थे। इस बार खुले में काम नहीं हो रहा है, सिर्फ दुकानदारों के लिए ही सप्लाई दी जा रही है। अगर पटाखे लेने है तो दोपहर बाद ही मिलेंगे।

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तीन-चार बाल्टियों में भरी रखी थी मिट्टी
ग्रामीण जहां पर पटाखे तैयार करते हैं, वहां पर सुरक्षा के मानक भी पूरे नहीं थे। खेत में बने एक कमरे में पटाखे रखे थे और उसके अंदर ही सुतली बम तैयार हो रहा था। उसी के बाहर महिलाएं कागज चिपका रही थी। अचानक दुर्घटना होने की स्थिति में बचाव के लिए तीन-चार बाल्टियों में मिट्टी भरी रखी थी। इसके अलावा आग बुझाने वाला सिलेंडर भी रखा था। पूरे खेत में तिरपाल पर सुतली बम बिखरे पड़े थे। लोगों का कहना है कि प्रशासन ने उन्हें आतिशबाजी तैयार करने की ट्रेनिंग भी नहीं दी गई है और अपनी जान को जोखिम में डालकर पटाखे बनाते है।

सख्ती होने की वजह से काम हो रहा कम
इसके अलावा गांव वालों का कहना है कि इस बार सख्ती ज्यादा होने की वजह से बहुत कम लोग काम कर रहे हैं। जिनके पास प्रशासन से लाइसेंस मिला है, उन्होंने तीन दिन पहले से माल बनाना शुरू किया है। हालांकि गांव में बहुत सारे लोग चोरी-छिपे काम कर रहे हैं लेकिन उनकी डीलिंग सीधे दुकानदारों से है। वहीं दुकानदारों को चुपके से माल की सप्लाई की जा रही है। आपको बता दें कि धौर्रा गांव में पटाखे बनाते समय विस्फोट में 20 साल में 36 लोगों की जान भी चुकी है। 

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