Inside Story: यूपी चुनाव में बीजेपी ने काटा दो और विधायकों का पत्ता, अभी योगी के गढ़ में सस्पेंस है बरकरार

शहर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का टिकट बीजेपी पहले ही फाइनल कर चुकी है। जबकि ग्रामीण सीट निषाद पार्टी के खाते में जाने की चर्चा है। वहीं, सपा की तरह चौरीचौरा सीट को भाजपा ने भी सेफ मोड में रखा है। माना जा रहा है कि इस सीट पर भी सपा का प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही बीजेपी अपना पत्ता खोलेगी।

अनुराग पाण्डेय
गोरखपुर:
 उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में भाजपा (BJP) ने विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल (Radhamohan Das Agarwal) के बाद दो और विधायकों के टिकट काट दिए। शुक्रवार को गोरखपुर की 6 विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशियों की सूची जारी की है। जिसमे दो विधानसभा में नए प्रत्याशी उतारे हैं। इनके अलावा चार सीटों पर पुराने प्रत्याशियों पर ही भरोसा जताया है। गोरखपुर की कैंपियरगंज सीट से भाजपा विधायक फतेह बहादुर सिंह तो पिपराइच सीट से विधायक महेंद्र पाल सिंह को ही बीजेपी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया है। बांसगांव में तमाम विरोधों के बाद भी विमलेश पासवान को ही फिर बीजेपी ने टिकट दिया। जबकि चिल्लुपार सीट से बसपा सरकार में मंत्री रहे राजेश त्रिपाठी को भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित किया। वहीं सहजनवा विधायक शीतल पांडेय और खजनी विधायक संत प्रसाद का टिकट इस बार भाजपा ने काट दिया। सहजनवां से पार्टी ने बीजेपी के क्षेत्रिय मंत्री प्रदीप शुक्ल को मैदान में उतारा है। जबकि खजनी सीट धनघटा के विधायक श्रीराम चौहान को प्रत्याशी बनाया गया है।

शहर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogiaditiyanath) का टिकट बीजेपी पहले ही फाइनल कर चुकी है। जबकि ग्रामीण सीट निषाद पार्टी (Nishad Party) के खाते में जाने की चर्चा है। वहीं, सपा (SP) की तरह चौरीचौरा सीट को भाजपा ने भी सेफ मोड में रखा है। माना जा रहा है कि इस सीट पर भी सपा का प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही बीजेपी अपना पत्ता खोलेगी। 

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जानें भाजपा ने किन प्रत्याशियों को दिया है टिकट

फतेह बहादुर सिंह, कैंपियरगंज
पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह के बेटे फतेह बहादुर सिंह लगातार 6 बार से विधायक बन रहे हैं।साल 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले विधानसभा सीटों का समीकरण बदल गया था। परिसीमन के बाद मानीराम विधानसभा सीट का अस्तित्व खत्म हो गया। मानीराम के साथ ही महराजगंज की पनियरा विधानसभा सीट के कुछ हिस्से को मिलाकर कैंपियरगंज विधानसभा क्षेत्र का गठन किया गया। इस सीट पर पहला चुनाव साल 2012 में हुआ था। फतेह बहादुर सिंह ने नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता था। इसके बाद साल 2017 में भी इन्होंने भाजपा से लड़कर रेकॉर्ड वोटों से जीत दर्ज की थी। 

श्रीराम चौहान, खजनी
श्रीराम चौहान तीन बार से लगातार बीजेपी के विधायक हैं। इसके अलावा वे तीन बार बस्ती लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं। अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में वे खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री भी रहें। वर्ष 2017 में धनघटा सीट से भाजपा के टिकट पर श्रीराम चौहान ने जीत दर्ज की। इस बार चुनाव में पार्टी ने उनकी सीट बदलकर खजनी से उन्हें उम्मीदवार बनाया है।

प्रदीप शुक्ल, सहजनवा
भाजपा ने इस बार सहजनवा सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी विधायक शीतल पांडेय का टिकट काटकर यहां से प्रदीप शुक्ल को प्रत्याशी बनाया है। प्रदीप वर्तमान में भारतीय जनता में पार्टी में क्षेत्रिय मंत्री हैं। हालांकि इससे पहले उन्होंने कभी चुनाव तो नहीं लड़ा, लेकिन बीते एक साल से वे सहजनवा इलाके में काफी सक्रिय होकर टिकट के लिए दावेदारी की थी। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी के काफी करीबी होने की वजह से पार्टी ने उनपर भरोसा जताया है। 

विमलेश पासवान, बांसगांव
मानीराम के विधायक रहे स्व. ओमप्रकाश पासवान के बेटे और बांसगांव के सांसद कमलेश पासवान के छोटे भाई विमलेश पासवान को लगातार दूसरी बार बीजेपी ने अपना बांसगांव से प्रत्याशी बनाया है। विमलेश पहली बार 2017 में चुनाव लड़कर यहां से विधायक चुने गए। हालांकि राजनीति तो उनके खून में बसी है, लेकिन वे पेशे से डॉक्टर भी हैं। विमलेश पासवान बीडीएस सर्जन हैं और राजनीति में आने से पहले वे बीआरडी मेडिकल कॉलेज में संविदा पर नौकरी कर रहे थे। लेकिन विधायक बनने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। 

राजेश त्रिपाठी, चिल्लुपार
मुक्तिपथ वाले बाबा के नाम से फेमस बसपा सरकार में चिल्लूपार से विधायक और राज्यमंत्री रहे राजेश त्रिपाठी का राजनीतिक सफर इसी सीट से शुरू हुआ। बड़हलगंज मुक्तिपथ के लिए दिन- रात एक करने वाले राजेश त्रिपाठी 'मुक्तिपथ वाले बाबा' के नाम से ही लोग पहचानते हैं। इसके बाद राजेश त्रिपाठी को यहां की जनता ने ही पहली बार साल 2009 में चुनाव मैदान में उतारा। मुक्तिपथ को लेकर चर्चा में आए राजेश त्रिपाठी ने चिल्लूपार से सीट से पूर्वांचल के बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी को पहली बार चुनाव में हरा दिया और विधायक बन गए। इसके बाद उन्हें बसपा सरकार में राज्य मंत्री भी बनाया गया। हालांकि साल 2017 में इस सीट से बसपा ने एक बार फिर हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी टिकट दे दिया तो राजेश त्रिपाठी भाजपा में शामिल हो गए। लेकिन 2017 के चुनाव में वे विनय शंकर तिवारी से चुनाव हार गए। एक बार पार्टी ने राजेश त्रिपाठी पर भरोसा जताया है।

महेंद्र पाल सिंह, पिपराइच
बीजेपी ने लगातार दूसरी बार पिपराइच सीट से महेंद्र पाल सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है। इससे पहले वह 2017 में बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़े और बसपा प्रत्याशी आफताब आलम को पीछे छोड़ उन्होंने यहां से जीत दर्ज की। वहीं, माना जाता है कि पिपराइच विधानसभा क्षेत्र में सरकार के तरफ से चीनी मिल और सबसे बड़ी सौगात इस आयुष विश्वविद्यालय का शिलान्यास में भी उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। इससे पहले महेंद्र पाल सिंह की पत्नी भी चरगावा से ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं। हालांकि उनका राजनीतिक सफर कोई खास लंबा तो नहीं है, लेकिन वे पेशे से एक बड़े बिजनेसमैन भी हैं।

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