अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का 50 फीसदी काम हुआ पूरा, जानिए किस दिन गर्भगृह में विराजेंगे रामलला

यूपी के अयोध्या जिले में राममंदिर का निर्माण 50 फीसदी काम पूरा हो चुका है। वहीं गर्भगृह में 14 जनवरी 2024 को गर्भगृह में विराजमान हो जाएंगे। इस पल के साक्षी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बनेंगे। पिछले दो साल से चल रहा मंदिर का निर्माण अगले दो साल तक पूरा हो जाएगा।

अयोध्या: उत्तर प्रदेश की रामनगरी में बन रहे भव्य राम मंदिर का निर्माण का काम लगभग 50 प्रतिशत पूरा हो गया है। इतना ही नहीं रामलला अपने गर्भगृह में कब विराजने वाले है, उसकी भी तारीख आ गई है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि 14 जनवरी 2024 यानी मकरसंक्रांति के दिन रामलला अपने विग्रह में विराजेंगे। इसके अलावा आम जनता के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए जाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि इस ऐतिहासिक मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अयोध्या में मौजूद रहेंगे।

अगले दो साल में मंदिर का निर्माण होगा पूरा
श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की तरफ से मीडिया को बुलाकर मंदिर निर्माण की प्रगति के बारे में बताया गया। इस दौरान ट्रस्ट के प्रोजेक्ट मैनेजर जगदीश आपडे ने बताया कि मंदिर निर्माण का काम पिछले दो साल से चल रहा है और अगले दो साल के अंदर मंदिर का काम पूरा हो जाएगा। वहीं गर्भगृह का निर्माण दो महीने के अंदर हो जाएगा। उसके बाद श्रद्धालु रामलला के दर्शन कर पाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर के अन्य हिस्से का निर्माण कार्य चलता रहेगा। चंपत राय ने बताया कि राम नवमी के दिन सूर्य की रोशनी सीधे भगवान रामलला के मस्तक पर पड़ेगी तो इसके लिए अंतरिक्ष से टेलीस्कोपिक विधि तैयारी की जा रही है। इस दिशा में काम निर्माण कार्य से जुड़ी एजेंसियां कर रही हैं।

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देव उत्तरायण के दिन विराजेंगे गर्भगृह में विराजेंगे रामलला 
वहीं ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का कहना है कि 14 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति के दिन राम मंदिर का उद्घाटन प्रस्तावित है। इस दिन देव उत्तरायण होंगे, जिसे शुभ कार्यों के लिए सर्वोत्तम माना जाता है इसलिए रामलला गर्भगृह में विराजमान हो जाएंगे। इस खास मौके के साक्षी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी होंगे। उन्होंने आगे बताया कि मंदिर की ऊंचाई 161 फीट है, जिसमें 394 खंभे होंगे और हर खंभ पर 16 मूर्तियां रामायण से जुड़ी बनेंगी। वहीं ग्राउंड लेवल 17 फीट ऊपर है और खुदाई स्थल से 60 फीट ऊपर है। मंदिर को बनाने में लोहे की सरिया का कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया है बल्कि ज्यादा से ज्यादा कॉपर का इस्तेमाल किया जा रहा है।  

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