क्यों विश्वास के संकट से जूझ रही बसपाः 4 साल में बदले गए 4 प्रदेश अध्यक्ष, निकाले 12 विधायक

एक तरफ जहां पार्टियां अपने एक-एक विधायक को संजोकर रखने में लगी हैं मायावती ने चार सालों में अपने 19 विधायकों में 12 को बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। 

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी में क्या कोई नेता यह विश्वास के साथ कह सकता है कि वह पार्टी में सुरक्षित है। दो विधायकों, जिसमें एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बसपा सुप्रीमो के खास, के निकाले जाने के बाद एक सवाल सबके जेहन में आ रहा है। महज 19 विधायकों वाली बसपा अपने 12 विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा चुकी है और चार साल में चौथे प्रदेश अध्यक्ष को कुर्सी पर बिठा चुकी है। यह तब हो रहा है जब जनता की अदालत में जाने में कुछ ही महीने बचे हैं और राजनैतिक दल अपने छोटे कार्यकर्ता तक पर कार्रवाई करने से बच रहे। 

विधानमंडल दल के नेता और राष्ट्रीय महासचिव को किया बाहर

Latest Videos

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पार्टी के पुराने कैडर और कद्दावर नेताओं को एक झटके में बाहर का रास्ता दिखाकर चुनाव पूर्व कड़े संकेत दिए हैं। निकाले गए दोनों विधायक बसपा संस्थापक कांशीराम के समय से थे। यूपी के कटेहरी से विधायक लालजी वर्मा वर्तमान में बसपा विधायक दल के नेता थे। बसपा शासन में मंत्री भी रहे हैं। जबकि दूसरे निकाले गए विधायक रामअचल राजभर पार्टी के यूपी के अध्यक्ष रहे हैं। दोनों जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। 

19 विधायकों में 12 को निकाला चुकी हैं मायावती

एक तरफ जहां पार्टियां अपने एक-एक विधायक को संजोकर रखने में लगी हैं मायावती ने चार सालों में अपने 19 विधायकों में 12 को बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। 

क्यों निकाला इन लोगों को ?

बसपा ने अपने विधायकों को निकालने के पीछे यह तर्क दे रही है कि ये लोग पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल थे। दोनों विधायक हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में दूसरे पार्टियों का सहयोग किया। 

चुनाव पूर्व ऐसे निष्कासन से जनाधार पर असर का डर नहीं?

यूपी विधानसभा चुनाव का काउंटडाउन शुरू हो चुका है लेकिन बसपा अपने जनाधार की फिक्र किए बिना यह कदम उठा रही। क्या उसे नुकसान का डर नहीं। राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले गुआक्टा के पूर्व अध्यक्ष डाॅ.राजेश चंद्र मिश्र कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी का वोटर किसी नेता को वोट नहीं देता बल्कि वह चुनाव चिन्ह, मायावती व कांशीराम के नाम पर वोट करता है। यह मायावती अच्छी तरह से जानती हैं। हालांकि, यह भी है कि बिना सोशल इंजीनियरिंग के बसपा सत्ता में कभी भी नहीं आ सकी है। जातिगत भाईचारा समितियों ने बसपा की पकड़ अन्य जातियों में मजबूत की है। बसपा अपने वोटबैंक के साथ लोकल स्तर पर नेताओं को शामिल कराकर समीकरणों को साधती है। 

पार्टी कैडर को सक्रिय करने के लिए कड़ा संदेश !

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक प्रो.अजय कुमार शुक्ल का मानना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन बड़ा ही निराशाजनक रहा। दोनों चुनावों के बाद बसपा के अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगे थे। अब चूकि 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव करीब है, ऐसे में पार्टी अपना स्तर ऊपर उठाना चाहती हैं। शिथिल पड़ गए नेताओ, संगठन के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को कड़ा संदेश देने के लिए के लिए संदेह में आए अपने ही जिम्मेदार नेताओं पर कार्यवाही एक रणनीति हो सकती है। इससे बसपा प्रमुख जनता के बीच में अपनी चर्चा को बनाए रखकर जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहीं हैं। साथ ही साथ अपने पार्टी  कार्यकर्ताओं को अनुशासन का संदेश भी देना चाह रही हैं।

पार्टी के कई चेहरे चुनाव पूर्व अपने अस्तित्व को लेकर खौफ में

बसपा की इस कार्रवाई से संगठन के लोगों से अधिक चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे लोगों में खौफ है। दोनों कद्दावर नेताओं के अलावा पार्टी अभी एक पखवारा पहले ही पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में कई पूर्व सांसद व अन्य नेताओं को निष्कासित कर चुकी है। शुक्रवार को पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे जीएम सिंह ने इस्तीफा दे दिया। नाम न छापने की शर्त पर एक बसपा नेता ने कहा कि पूर्व विधायक सहित कई लोग पर कार्रवाई तय थी। वह कहते हैं कि कई नेताओं ने पंचायत चुनाव में पार्टी के कैडर का विरोध कर अपने चहेतों का प्रचार किया या अपना समीकरण साधने के लिए चुप्पी साध ली। पार्टी रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई कर रही है। हालांकि, विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे गोरखपुर जिले के एक बसपा नेता ने कहा कि चार साल से तैयारी में लगे हैं लेकिन मन में एक डर भी बना रहता है कि कब टिकट कट जाए या पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए। 

संगठन में यूपी चीफ भी लगातार बदल रहे

बहुजन समाज पार्टी वैसे तो शुरू से ही मायावती के निर्णयों पर ही चलती रही है लेकिन इन दिनों संगठन में काफी उथलपुथल भी मचा हुआ है। करीब सात महीने पहले बसपा ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर भीम राजभर को नियुक्त किया। विधानसभा चुनाव के बाद लगातार बदल रहे यूपी अध्यक्ष के पद पर आसीन वह चौथे नेता हैं। इसके पहले मुनकाद अली, आरएस कुशवाहा और रामअचल राजभर बारी-बारी बदले जा चुके थे। 
यही हाल नेता बसपा के संसदीय दल के नेता पद का है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा की दस सीटें हैं। लेकिन संसदीय दल के नेता पद के लिए आए दिन किसी नए सांसद को आसीन कर दिया जाता है। 

बसपा से निकाले गए विधायक

ये विधायक बचे हैं

Share this article
click me!

Latest Videos

जेल से बाहर क्यों है Adani? Rahul Gandhi ने सवाल का दे दिया जवाब #Shorts
UP bypoll Election 2024: 3 सीटें जहां BJP के अपनों ने बढ़ाई टेंशन, होने जा रहा बड़ा नुकसान!
Jharkhand Election Exit Poll: कौन सी हैं वो 59 सीट जहां JMM ने किया जीत का दावा, निकाली पूरी लिस्ट
Rescue Video: आफत में फंसे भालू के लिए देवदूत बने जवान, दिल को छू जाएगा यह वीडियो
दिल्ली चुनाव से पहले केजरीवाल को कोर्ट से लगा झटका, कर दिया इनकार । Arvind Kejriwal । Delhi HC