22 लाशें देख चिल्ला रहे थे जानवर, कौव्वे मंडरा रहे थे, चीख रही थीं औरतें...

करीब डेढ़ घंटे बाद उसने 22 लोगों को लाइन में खड़ा किया और सबको गोली मार दी। किसी को 2 गोली तो किसी को 4 गोलियां मारी गई थी।

लखनऊ. 14 फरवरी, 1981 का दिन, बेहमई गांव और वो 22 लोग, जिन्हें लाइन में खड़ा करके फूलन देवी ने गोली मार दी थी। ये नरसंहार को 37 साल बीत गए हैं लेकिन आज भी वो मंजर लोगों को याद है। बेहमई गांव के लोग आज भी उस दिन को याद कर दहशत में आ जाते हैं। 70 साल के ठाकुर राजाराम सिंह बताते हैं कि इस काण्ड को अंजाम देने के बाद जब डकैत गांव से चले गए तो जानवर चिल्ला रहे थे, आसमान में कौव्वे मंडरा रहे थे और औरते दहाड़े मार मार कर रो रही थीं। हर तरफ दहशत का माहौल था। फूलन देवी से जुड़ी ये घटना उनके जन्मदिन पर बता रहे हैं। उनका जन्म 10 अगस्त, 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन में एक मल्लाह परिवार में हुआ था।

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कोठरी में छुपकर देखी थी राजाराम ने पूरी घटना 

-राजाराम बताते हैं कि उस दिन वे जानवर चराने नदी किनारे गए थे। दोपहर ढाई-3 बजे लौटे तो देखा फूलन अपने गैंग के साथ गांव में डकैती डाल रही थी लोगों को मारपीट कर पकड़ा जा रहा था। डर कर वो गांव में बंद पड़ी एक झोपड़ी में घुसकर छुप गए। वहां से उन्होंने सबकुछ देखा। गांव के ज्यादातर लोग भाग गए थे। डकैत को जो लोग मिल रहे थे उन्हें वे किसी का बाल पकड़ कर तो किसी को बन्दूक की नोक पर बने स्मारक पर ला रहे थे। 

-गांव में मिले 22 लोगों को एक जगह लाइन में खड़ा किया गया जिसमें उनका भाई बनवारी भी शामिल था। इनमें से 2 लोग दूसरे गांव के थे। फूलन गुस्से में थी और खासकर ठाकुरों के घर में घुसकर डकैती डाल रही थी और महिलाओं को मारपीट रही थी। 

-करीब डेढ़ घंटे बाद उसने 22 लोगों को लाइन में खड़ा किया और सबको गोली मार दी। किसी को 2 गोली तो किसी को 4 गोलियां मारी गई थी। यह देख कर वो वहीं बेहोश हो गए। जब आंख खुली तो चारो तरफ दहशत थी। जानवर चिल्ला रहे थे, आसमान में कौव्वे मंडरा रहे थे और औरतें चीख-चीख कर रो रही थीं।

छह महीने की बच्ची को भी नहीं छोड़ा

-राजाराम के भाई की उम्र उस समय 21-22 साल थी। वे बताते हैं कि जालिमों ने उसकी छह महीने की बच्ची को भी नहीं छोड़ा था। बच्ची घर के दरवाजे पर खेल रही थी। एक डकैत ने उसे भी उठाकर पटक दिया दिया था। जिससे उसकी कुल्हे की हड्डी टूट गयी थी। आखिरकार 6-7 महीने बाद वह बच्ची भी दुनिया को अलविदा कह गई।

-ठाकुर राजाराम बताते हैं कि गांव की हालत ठीक नहीं है। यहां सड़क तक नहीं है। अभी तीन महीने पहले लाईट आई है और महीने भर से गायब है। 15 दिन पहले गांव तक एक रोडवेज बस शुरू हुई है जोकि एक दिन छोड़ कर गांव तक आती है। 

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