Inside Story: सपा से चुनाव हारे तो भाजपा का दामन थाम जीत की हासिल, अब योगी की टीम में हुए शामिल

बरेली शहर से तीन बार के विधायक डॉ. अरुण कुमार सक्सेना का योगी सरकार में स्वतंत्र प्रभार के साथ वन्य मंत्री बनने का सफर बेहद रोचक है। वह तब महज चिकित्सक थे, जो बड़े भाई के बसपा से चुनाव हारने के बाद राजनीति में आए तो साइकिल पर सवार होकर लेकिन बाद में कमल के निशान पर विधायक बन सके। तीन बार लगातार जीत का ईनाम योगी सरकार ने लाल बत्ती के रूप में दिया है।

Pankaj Kumar | Published : Mar 31, 2022 1:03 PM IST / Updated: Mar 31 2022, 06:34 PM IST

राजीव शर्मा
बरेली:
योगी सरकार 2.0 में वन एवं पर्यावरण विभाग के स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य मंत्री बनाए गए डॉ. अरुण कुमार सक्सेना के सियासत में आने का किस्सा बेहद रोचक है। आज लालबत्ती भले ही उनको मिली है, लेकिन सच तो यह है कि इसे वह अपने बड़े भाई अनिल कुमार एडवोकेट को दिलाना चाहते थे। खुद राजनीति में आने की बात कभी सोची भी नहीं थी लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि एक चिकित्सक को राजनीति में उतरना पड़ा। 

बड़े भाई बसपा से हारे तो खुद सपाई हो गए
दरअसल, राज्य मंत्री के बड़े भाई अनिल कुमार एडवोकेट बरेली शहर से विधानसभा के चुनाव लड़ चुके थे। उन्होंने 2002 में बसपा के टिकट पर लड़ा लेकिन जीत न सके। अब 2007 के विधानसभा चुनाव में डॉ. अरुण ने सोचा था कि बड़े भाई को ही लड़ाना है लेकिन ऐन मौके पर अनिल ने इन्कार कर दिया। डॉ. अरुण से बोले अबकी तुम लड़ोगे, मैं नहीं। चूंकि भाजपा से तत्कालीन विधायक राजेश अग्रवाल का कद बड़ा था। उनका टिकट तो कटना मुमकिन न था इसलिए चुनाव लड़ने के लिए सपा ज्वाइन की गई।

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पहले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे
डॉ. अरुण कुमार को तत्कालीन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने इसलिए टिकट दे दिया, क्योंकि बरेली शहर से राजेश अग्रवाल से पहले भाजपा के टिकट पर चार बार डॉ. दिनेश जौहरी विधायक बने चुके थे। वह भी कायस्थ बिरादरी से आते थे और डॉ. अरुण भी। हालांकि पहला चुनाव डॉ. अरुण नहीं जीत पाए। सपा के टिकट पर लड़कर उनको महज 1622 वोट ही मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे। अलबत्ता, डॉ. अरुण सपा में ही बने रहे लेकिन अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की उनकी मंशा अगले विधानसभा चुनाव 2012 में तब बलबती हो गई, जब परिसीमन के बाद तत्कालीन शहर विधायक राजेश अग्रवाल कैंट सीट पर चुनाव लड़ने चले गए। 

डॉ. अरुण के लिए उनके बड़े भाई अनिल कुमार की पैरवी काम आई तो वह सपा छोड़कर भाजपा से टिकट लाने में कामयाब हो गए। शहर सीट भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती रही है। इसका लाभ डॉ. अरुण को मिला और वह पहला चुनाव भाजपा के टिकट पर ही 2012 में जीतकर विधायक बन सके। 2017 के चुनाव में भी भाजपा ने उन्हें ही लड़ाया और वह दुबारा जीते। 2022 के चुनाव में 73 वर्ष के हो चुके डॉ. अरुण कुमार को लेकर भले ही यह कयास लगाए गए कि उनको फिर टिकट में अधिक उम्र बाधा बन सकती है लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भाजपा ने उन पर ही दांव लगाया। नतीजतन, न सिर्फ डॉ. अरुण तीसरी बार विधायक चुने गए बल्कि लगातार 15 साल विधायक बने रहने का ईनाम योगी सरकार ने उनको स्वतंत्र प्रभार का राज्य मंत्री बनाकर दिया है। उनको वन्य पर्यावरण मंत्रालय दिया गया है।

बरेली शहर में हैं अच्छे चिकित्सक की पहचान, अभी भी देखते हैं मरीज
डॉ. अरुण कुमार आज मंत्री भले ही हैं लेकिन आम जनता के लिए उनकी पहचान एक अच्छे चिकित्सक के रूप में खास तौर पर है। बरेली आईएमए के अध्यक्ष भी रह चुके डॉ. अरुण पिछले 40 साल से भी ज्यादा वक्त से बरेली शहर में प्रैक्टिस कर अच्छे फिजिशयन की पहचान बना चुके हैं। शहर के कोहाड़ापीर पर उनका क्लीनिक है, जहां वह विधायक होने के बाद भी नियमित बैठकर मरीजों को देखते हैं। लोगों को भरोसा है कि मंत्री बनने के बाद भी वह मरीजों को देखना जारी रखेंगे। डॉ. अरुण मिजाज से बेहद सहज और सरल हैं।

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