मुलायम सिंह की गैरहाजिरी में अखिलेश यादव को देने होंगे कई इम्तिहान, सपा के सामने भी होंगी कई चुनौतियां

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया। नेताजी के निधन के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए अब सियासी चुनौतियां और बढ़ जाएंगी। नेताजी मार्गदर्शक के तौर पर हमेशा पार्टी से जुड़े रहे थे।

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव का गुरूग्राम के मेदांता अस्पताल में बीते सोमवार सुबह निधन हो गया। सपा संस्थापक नेताजी पिछले कई सालों से पार्टी के संरक्षक की भूमिका में थे। लेकिन उनकी उपस्थित और मौजूदगी न सिर्फ अखिलेश यादव बल्कि लाखों कार्यकर्ताओं के लिए वटवृक्ष के समान थी। नेताजी की छत्रछाया में सपा कार्यकर्ता पूरे जोश के साथ नारा लगाते नजर आते थे, जिसने न कभी झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है। हालांकि अब मुलायम सिंह के निधन के बाद सपा की राह कितनी मुश्किल होगी और वह कितना आगे बढ़ेगी यह उनके बेटे अखिलेश यादव के सियासी कौशल पर भी निर्भर करता है। 

अखिलेश यादव के आगे हैं कई इम्तिहान
अखिलेश यादव को अब आगे का सफर पिता मुलायम सिंह के बिना तय करना है। वहीं आगे की सियासी डगर कठिन ही दिखती है जो सपा के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। आने वाले समय में अखिलेश यादव को कई बड़े-बड़े इम्तिहानों से होकर गुजरना है। इस दौरान जहां उन्हें भाजपा से जूझना होगा तो वहीं उनके अपने चाचा शिवपाल यादव की भी पार्टी भी उनके लिए कड़ी चुनौती बन सकती है। मैनपुरी लोकसभा पर उपचुनाव होना है। नेताजी इसी सीट से सांसद थे। अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ा इम्तिहान तो 2024 के लोकसभा चुनाव हैं।

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पिता के बिना अखिलेश के सामने होंगी कई चुनौतियां
वहीं मुलायम सिंह यादव के न रहने पर सपा कार्यकर्ताओं को सदमे से उबारना और चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकना समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल काम है। नेताजी के समर्थकों और कार्यकर्ताओं के साथ भावनात्मक रिश्ते की डोर को अखिलेश यादव कितनी मजबूती से बांध पाते हैं, इसके लिए उनको सावधानी से कदम उठाना होगा। मुलायम सिंह के साथ काम कर चुके पुराने बुजुर्ग नेताओं के साथ पार्टी नेताजी की विरासत को आगे बढ़ा सकती है। नेताजी अखिलेश यादव को कई मौकों पर आशीर्वाद देकर यह साफ कर चुके हैं कि उनके राजनीतिक उत्तराधिकार व विरासत को लेकर कोई संशय नहीं है। 

सियासी विरासत को आगे बढ़ाना होगी बड़ी चुनौती
इसमें तो कोई संदेह नहीं है कि अखिलेश यादव की तुलना नेताजी से नहीं की जा सकती। मुलायम सिंह ने अपनी राजनीतिक यात्रा में कई मानक गढ़े और कई चौंकाने वाले फैसले भी लिए थे। नेताजी जमीनी राजनीति में खूब माहिर थे। वह अपने कार्यकर्ताओं की नब्ज को बहुत अच्छे से पहचानते थे। अग कोई उनसे नाराज हो जाता था तो उसे कैसे मनाना है यह गुर भी नेताजी बहुत अच्छे से जानते थे। इसीलिए मुलायम सिंह के विरोधी दलों के नेताओं से भी निजी रिश्ते रहे हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सहित तमाम नेता मुलायम से निजी रिश्तों की बात करते हैं। नेताजी के निधन के बाद अखिलेश यादव के सामने नेताजी की सियासी विरासत को आगे बढ़ाना बड़ा काम होगा।

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