आज भी ताजा है 28 साल पुराने जख्म, जानिए क्यों कुशीनगर के किसी भी थाने में नहीं मनाई जाती जन्माष्टमी 

कुशीनगर के किसी भी थाने में फिछले 28 सालों से जन्माष्टमी का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। 30 अगस्त 1994 में जन्माष्टमी की रात 6 जाबांज पुलिसकर्मी डकैतों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए थे। परंपरा को कायम रखते हुए इस बार भी किसी भी थाने में जन्माष्टमी का पर्व नहीं मनाया जाएगा।

कुशीनगर: पूरे देश में जहां जन्माष्टमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है वहीं कुशीनगर के किसी भी थाने में इस पर्व को नहीं मनाया जाता है। कुशीनगर पुलिस द्वारा जन्माष्टमी का त्यौहार न मनाए जाने के पीछे एक बड़ा कारण है। जन्माष्टमी की रात कुशीनगर में 6 जांबाज पुलिसकर्मी मौत की नींद सो गए थे। इसी कारण कुशीनगर पुलिस 30 अगस्त,1994 की तारीख को चाहकर भी नहीं भूल पाती है। 30 अगस्त 1994 जन्माष्टमी की रात तरयासुजान थाने के 6 पुलिसकर्मी लोगों की सुरक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। जिस कारण कुशीनगर के किसी भी थाने में जन्माष्टमी नहीं मनाई जाती है। नब्बे के दशक में गंडक नदी और बिहार से लगे जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में डकैतों का आए दिन आतंक छाया रहता था। लोगों की इस समस्या को दूर करने के लिए शासन ने सीमावर्ती क्षेत्र में हनुमानगंज, जटहां बाजार व बरवापट्टी थाना खोला था। 

डकैतों से हुई थी मुठभेड़
इसी दौरान कुशीनगर जनपद देवरिया से अलग होकर अस्तित्व में आया था। इसी बीच सब इंस्पेक्टर अनिल पांडेय की तरयासुजान थाने में तैनाती हुई थी। 30 अगस्त की रात थाने में पचरुखिया घाट के दूसरी तरफ बांसी नदी के किनारे डकैतों के आने की सूचना मिली। जिसके बाद जिले के पहले एसपी के तौर पर कार्यभार संभाल रहे तत्कालीन एसपी बुद्धचंद ने तरयासुजान थाने के तत्कालीन एसओ अनिल और कुबेरस्थान थाने के तत्कालीन एसओ राजेंद्र यादव पडरौना के कोतवाल योगेंद्र प्रताप को वहां भेजा था। मौके पर पहुंची पुलिस को जानकारी मिली कि डकैत पचरुखिया गांव में हैं। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने नाविक को बुलाकर नदी के दूसरे छोर पर गए। लेकिन वहां भी डकैतों का कोई सुराग नहीं मिला।

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6 जाबांज पुलिसकर्मियों की हुई थी मौत
डकैतों का सुराग नहीं मिलने पर पुलिसकर्मी वापस जाने लगे तो पहली खेप के पुलिसकर्मी सही-सलामत नदी के उस पार पहुंच गए। लेकिन नाविक जैसे ही दूसरी खेप के पुलिसकर्मियों को लेकर जाने लगा वैसे ही डकैतों ने पुलिस पर फायरिंग कर हमला बोल दिया। इस हमले में नाविक और सिपाही विश्वनाथ यादव को गोली लगी। जिससे नाव अनियंत्रित हो गई। दूसरी बार में एसओ अनिल पांडेय और अन्य पुलिसकर्मी नाव में सवार थे। मुठभेड़ खत्म होने के बाद नाव में सवार पुलिसकर्मियों की खोज की गई। जिसमें कुबेरस्थान के एसओ राजेंद्र यादव, तरयासुजान थाने के आरक्षी नागेंद्र पांडेय,पडरौना कोतवाली में तैनात आरक्षी खेदन सिंह, तरयासुजान एसओ अनिल पांडेय, विश्वनाथ यादव व परशुराम गुप्त मृत अवस्था में पाए गए।

पडरौना कोतवाली का स्मृति द्वार आज भी देता है घटना की गवाही
इस हमले में नाविक भूखल की भी मौत हो गई थी। जबकि पहली खेप में आए आरक्षी लालजी यादव, श्यामा शंकर राय, अनिल सिंह और दरोगा अंगद राय सुरक्षित बच गए थे। कोतवाल योगेंद्र सिंह ने इस घटना के बाद कुबेरस्थान थाने में अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था। यही कारण है कि तब से लेकर आज तक कुशीनगर के किसी भी थाने में जन्माष्टमी का पर्व नहीं मनाया जाता है। गांव वालों की सेवा में शहीद हुए पुलिसकर्मियों की गवाही आज भी पडरौना कोतवाली का स्मृति द्वार और यहां का शिलापट्ट देता है। हालांकि पुलिस इस त्यौहार को जनपद में शातिपूर्ण ढ़ंग से संपन्न करने के प्रयास में जुटी हुई है।

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