कानपुर निवासी कल्पना दीक्षित की मौत कोरोना काल के दौरान होने के अब दो साल बाद उनकी अस्थियों का विसर्जन किया जाएगा। इंग्लैण्ड से वापस आया उनका पुत्र कानपुर के अस्थि कलश बैंक से अस्थियों को लेकर प्रयागराज के लिए रवाना हुआ। प्रयागराज में विधि-विधान से कल्पना की अस्थियों का विसर्जन करवाया जाएगा।
कानपुर: सनातन धर्म में हमेशा ही परंपरा रही है कि मरने वाले को मोक्ष तब ही मिलता है जब उसकी अस्थियों को गंगा जी में विसर्जित किया जाए। विदेश गए लोग भी आज तक इस परंपरा को मानते हैं। इसका ताजा उदाहरण देखने को मिला है। इंग्लैण्ड के रहने वाले दीपाशंकर दीक्षित यूपी के कानपुर पहुंचे। वहां उन्होंने भौरोघाट के मोक्षधाम में बने अस्थि कलश बैंक से अपनी मां की अस्थियों को पूरे विधि विधान से लिया। इसके बाद वह उसे लेकर प्रयागराज के लिए रवाना हो गए।
दरअसल कानपुर के आर्यनगर की रहने वाली कल्पना दीक्षित (56) का निधन दो साल पहले कोरोनाकाल में हो गया था। हालांकि उस दौरान उनके बेटे दीपाशंकर ने भारत आने का काफी प्रयास किया लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हो सकी। इसका कारण है कि उस समय भारत में लॉकडाउन लगा हुआ था। इसी वजह से कल्पना के शव का अंतिम संस्कार उनके भतीजे आनंद त्रिपाठी के द्वारा किया गया।
अस्थि कलश बैंक में थीं अस्थियां
भतीजे द्वारा अंतिम संस्कार किए जाने के बाद दीपाशंकर ने अपने ससुर जगतवीर सिंह द्रोण से अनुरोध किया कि वह उनकी मां(कल्पना) की अस्थियों को अस्थि कलश बैंक में सुरक्षित रखवा दें। उनके द्वारा ऐसा ही किया गया। जिसके बाद अब दीपाशंकर इनके विधि-विधान से विसर्जन के लिए पहुंचे हुए हैं।
अस्थि कलश बैंक के संस्थापक मनोज सेंगर के द्वारा बताया गया कि ये अस्थि कलश कल्पना जी का ही था। बेटे के नहीं आने पर भतीजे ने उनका अंतिम संस्कार किया था। हालांकि अब दो साल के बाद उनके बेटे वापस आ गए हैं। जिसके बाद विधि-विधान से पूजन कर वह कलश को प्रयागराज लेकर गए। प्रयागराज में ही अस्थियों का विसर्जन किया जाएगा।
दो बार किया प्रयास नहीं मिली थी सफलता
दीपाशंकर ने बताया कि उन्होंने पत्नी दीपा के साथ एक साल बाद आने की कोशिश की। हालांकि एयरपोर्ट पर शरीर का तापमान ज्यादा पाया गया। इसके चलते उन्हें फिर वहीं रोक दिया गया। लेकिन इस बार उन्हें पत्नी और बेटी के साथ आने में सफलता मिली। वह रविवार को इंग्लैण्ड से निकले थे। इसके बाद मंगलवार की सुबह अस्थियां लेने लॉकर पहुंचे।
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