Special Story: विकास दुबे की कोठी पर लगा झंडा देख होती थी वोटिंग, एनकाउंटर के बाद आया बिकरू गांव में लोकतंत्र

Published : Jan 19, 2022, 02:41 PM ISTUpdated : Jan 19, 2022, 02:49 PM IST
Special Story: विकास दुबे की कोठी पर लगा झंडा देख होती थी वोटिंग, एनकाउंटर के बाद आया बिकरू गांव में लोकतंत्र

सार

कानपुर में कई वर्षों बाद लोकतंत्र का उदय हुआ है। पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव से लेकर पंचायत चुनाव तक बिकरू और आसपास के लोग विकास दुबे की कोठी पर लगे झंडे को देखकर वोट करते थे। हालांकि विकास दुबे की मौत के बाद पहली बार पंचायत चुनाव में ग्रामीणों ने अपनी मर्जी से प्रधान चुना। इससे पहले विकास दुबे और उसके परिवार की मर्जी से ही प्रधान से लेकर विधायक और सांसद तक चुने जाते थे। 

सुमित शर्मा
कानपुर:
कुख्यात अपराधी विकास के रसूख का इस बात से भी अंदाज लगाया जा सकता है कि उसकी राजनीति में कितनी मजबूत पकड़ थी। लोकसभा, विधानसभा या फिर पंचायत चुनाव हो, सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता उसकी कोठी की चौखट पर दस्तक देने जरूर जाते थे। विकास दुबे अपनी कोठी की छत पर जिस भी पार्टी का झंडा लगा देता था। बिकरू समेत आसपास के दर्जनों गांव के ग्रामीण उसी पार्टी के प्रत्याशी को वोट देते थे।
बिकरूवासियों के लिए 2021 और 2022 का सूरज नया सबेरा लेकर आया है। बिकरू में लोकतंत्र का उदय हुआ है। पंचायत चुनाव में 25 वर्षों बाद बिकरू समेत दर्जनों गांव के ग्रामीणों ने अपनी मर्जी का प्रधान चुना है। बिकरू गांव के लोगों ने मधुदेवी को प्रधान चुना है। बिकरू में 25 वर्षों से विकास दुबे के परिवार से या फिर उसकी मर्जी के प्रधान चुने जाते थे। विकास दुबे ने लोकतंत्र को अपनी कोठी की चौखट से बांध कर रखा था। वहीं 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में भी बिकरू समेत अन्य गांव के ग्रामीण अपनी मर्जी के प्रत्याशियों को वोट कर सकेंगे। विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद बिकरू में लोकतंत्र का उदय हुआ है।
आपको बता दें कि दुर्दांत अपराधी विकास दुबे ने बीते 2 जुलाई 2020 को अपने गुर्गों के साथ मिलकर 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद यूपी एसटीएफ ने विकास दुबे समेत 6 बदमाशों को एनकाउंटर में मार गिराया था। विकास दुबे की मौत के बाद बिकरू में ग्रामीणों ने जश्न भी मनाया था।

कोठी पर लगा झंडा बताता था किसको करना है वोट
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के संबंध सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से थे। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में किसी भी राजनीति पार्टी का प्रत्याशी चुनाव लड़ता था। वो प्रत्याशी सबसे पहले पंडित जी के दरबार में हाजिरी लगाता था। पंडित जी जिस भी प्रत्याशी से खुश हो गए, उसे बिकरू समेत दर्जनों गांवों से वोट दिलाने का अश्वासन दे देते थे। चुनाव की तारीख नजदीक आते-आते विकास की कोठी की छत उस पार्टी का झंडा लग जाता था।

गुर्गे डराते और धमकाते थे
विकास दुबे की कोठी पर लगे झंडे को देखकर बिकरू समेत आसपास के गांवों में किस पार्टी को वोट करना है। उसका मैसेज पहुंच जाता था। इसके बाद विकास दुबे के गुर्गे उस पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने लगते थे। विकास के गुर्गे ग्रामीणों को डराते और धमकाते थे। यदि किसी भी ग्रामीण ने इसका विरोध किया तो उसका अंजाम भी भुगतना पड़ता था।

सफेदपोश नेताओं का लगता था मेला
चुनाव नजदीक आते ही विकास दुबे की कोठी पर सफेद ॉपोश नेताओं का मेला लगता था। राजनीतिक पार्टियों के नेता विकास दुबे को हाथों-हाथ लेते थे। सभी प्रत्याशी यही चाहते थे कि विकास दुबे मेरे सिर पर हाथ रख दें। लेकिन विकास दुबे जिसके भी सिर पर हाथ रख देता, उसकी जीत लगभग तय मानी जाती थी। 

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