103 साल पुरानी उर्दू रामायण का हो रहा डिजिटलीकरण, जानिए किस यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में मौजूद है इकलौती प्रति

यूपी के जिले में स्थिति चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में उर्दू रामायण की इकलौती प्रति मौजूद है, जिसे लेकर यूनिवर्सिटी अब डिजिटलीकरण करने जा रही है। इतना ही नहीं भविष्य को लेकर भी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी। 

मेरठ: उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ में स्थिति चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में सालों पुरानी उर्दू रामायण को लेकर अहम निर्णय लिया गया है। विश्वविद्यालय के राजा महेंद्र प्रताप सिंह लाइब्रेरी में 103 साल पुरानी इस रामायण को यहां सहेज कर रखा गया है। उर्दू में लिखी यह रामायण बहुत जल्द ही ऑनलाइन डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध होगी क्योंकि इसका डिजिटलाइज्ड किया जा रहा है। इस लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन प्रोफेसर जमाल अहमद सिद्दीकी का कहना है कि महज चार से पांच दिन में सालों पुरानी रामायण ऑनलाइन उपलब्ध होगी।

सीसीएसयू में ही मौजूद है रामायण की एक प्रति
विश्वविद्यालय में छात्र उर्दू में लिखी रामायण का अध्ययन कर रहे हैं। उर्दू में लिखी यह रामायण बेहद अनमोल है और केवल इसी विश्वविद्यालय में एक प्रति मौजूद है। ज्यादातर हिंदुओं के पवित्र धार्मिक ग्रंथ रामाणय का अध्ययन हिंदी, संस्कृत या अंग्रेजी में किया जाता है पर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजा मेहन्द्र प्रताप लाइब्रेरी में छात्र-छात्राएं इन दिनों उर्दू में लिखी रामायण को पढ़ते देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं इस भाषा में लिखी रामायण के पीछे का इतिहास भी काफी पुराना है। 

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साल 1916 को लाहौर में उर्दू रामायण हुई थी प्रकाशित
दरअसल आजादी से पहले जब पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत का हिस्सा हुआ करते थे तब साल 1916 में लाहौर में उर्दू रामायण प्रकाशित हुई थी। इसको महात्मा शिवव्रत लाल द्वारा उर्दू में ट्रांसलेट किया था। जिससे जो भी उर्दू भाषा में रामायण का अध्ययन करना चाहते हैं वह इस रामायण को पढ़ सकें। इस रामायण को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित रामायण के आधार पर ही ट्रांसलेट किया गया है, जिसमें रामायण से जुड़ी सभी चौपाई उर्दू में दी हुई हैं।

उर्दू रामायण को निजी लाइब्रेरी में प्रोफेसर ने था देखा
विश्वविद्यालय में राजा महेंद्र प्रताप लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन सिद्दकी का कहना है कि कुछ सालों पहले एक कार्यक्रम में गए थे, जहां एक विद्वान व्यक्ति द्वारा उन्हें अपनी निजी लाइब्रेरी में आमंत्रित किया गया था। उन्होंने तब यह उर्दू रामायण उसकी लाइब्रेरी में देखी थी। उर्दू रामायण को देखकर जमाल ने आग्रह किया कि इस खास भाषा में लिखी यह रामायण को उन्हें दे दिया जाए। पहले तो उस व्यक्ति ने देने से मना कर दिया लेकिन रामायण का उचित मूल्य देने के बाद इसे राजा महेंद्र प्रताप लाइब्रेरी के लिए लाया गया और तभी से यह लाइब्रेरी की अमानत बन गई है।

अध्ययन के समय लाइब्ररी प्रशासन का पदाधिकारी रहते मौजूद
103 साल पुरानी यह उर्दू रामायण सिर्फ उन्हीं छात्रों को दी जाती है, जो इसके बारे में जानना चाहते हैं। खास बात तो यह है कि इसका अध्ययन करने के दौरान लाइब्रेरी प्रशासन का कोई न कोई पदाधिकारी छात्र व छात्राओं के साथ रहता है क्योंकि यह विश्वविद्यालय की एक अनमोल अमानत है। उर्दू रामायण जिस पब्लिकेशन हाउस में पब्लिश हुई थी, उसका यह अंश सिर्फ चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पास ही है। बता दें कि अन्य यूनिवर्सिटी में उर्दू में रामायण तो है लेकिन इस पब्लिकेशन का अंश नहीं है।

भविष्य में विश्वविद्यालय की वेबसाइट में कर सकते अध्ययन
यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी प्रशासन जल्द ही इस खास रामायण को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी लॉन्च करने जा रहा है। प्रशासन के द्वारा इसको डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है ताकि जो भी उर्दू भाषा का छात्र-छात्राएं हैं वो उर्दू में इस रामायण का अध्ययन कर सकते हैं। इतना ही नहीं इस रामायण को सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय लाइब्रेरी की वेबसाइट पर भी जाकर भविष्य में अध्ययन किया जा सकता है। इससे न सिर्फ ऑनलाइन बल्कि यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी पढ़ सकेंगे।

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