यूपी में सियासी जमीन तलाश रहें सियासी दलों की आखिर क्या हैं मंशा, जानिए क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार

यूपी चुनाव में राजनीतिक दल अपनी किस्मत जरूर अजमा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ये दल सिर्फ यूपी के उन दलों का वोट काटेंगे जो किसी जाति विशेष के नाम पर सूबे में राजनीति करते हैं। इसके अलावा इन दलों के चुनाव लड़ने का कोई खास मतलब नहीं है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर हर राजनीतिक दल तैयार है। इस बार चुनाव में जहां असल मुकाबला भाजपा और सपा के बीच है, वहीं यूपी के बाहर की कई क्षेत्रीय पार्टियां भी इसबार अपनी किस्मत अजमाने में जुटी हैं। यूपी चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के साथ ही पड़ोसी राज्य बिहार के कई राजनीतिक दल भी किस्मत अजमा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वैसे तो पहले भी बिहार के कई राजनीतिक दल अपना भविष्य तलाशने के लिए प्रत्याशी उतारते रहे हैं लेकिन, इस बार के विधानसभा चुनाव में बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने पूरी मजबूती के साथ उम्मीदवार उतारने के लिए कमर कस ली है। बिहार के जमुई लोकसभा सीट से सांसद चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत जदयू और बिहार के मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री मुकेश साहनी के नेतृत्व वाली वीआईपी भी अपने-अपने मजबूत पहलवान को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में है।

JDU-VIP लड़ रही यूपी में चुनाव
चिराग पासवान की पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी की है। दरअसल देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चुनावी हलचल का असर बिहार की राजनीति पर भी देखने को मिल रहा है। बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन की सरकार है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हो रहे चुनाव में भाजपा ने जदयू के साथ गठबंधन नहीं किया है। इससे परेशान जदयू ने अकेले अपने दम पर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। वहीं, वीआईपी भी अपने बलबूते चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी है।

यूपी में बदल गए सियासी समीकरण: योगेन्द्र त्रिपाठी
बिहार के राजनीतिक दलों की यूपी में चल रही तैयारियों के बीच राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार योगेन्द्र त्रिपाठी कहते हैं कि यूपी में जहां बीते 10-12 सालों में चुनावी समीकरणों में बदलाव हुआ है, वहीं बिहार की राजनीति अब भी जाति पर आधारित है। त्रिपाठी के मुताबिक, 'बिहार में आज भी अधिकतर जाति के आधार पर वोट डाला जाता है। वहां के राजनीतिक दलों को लगता है कि यूपी भी बिहार जैसा है। दोनों राज्यों में एक वक्त पर जाति की राजनीति हावी थी। बदलते वक्त के साथ यहां के क्षेत्रीय और जाति आधारित राजनीतिक दल अपनी जमीन खो रहे हैं, ऐसे में बिहार की पार्टियों को अपना वोटबैंक यहां दिख रहा है।'

इसलिए इन दलों को नहीं होगा कोई खास फायदा
एशियानेट हिंदी से बातचीत में योगेन्द्र ने कहा, 'यूपी में राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं। यहां अब गांवों तक इंटरनेट है, गांव में रहने वाले लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में बेहद कम संभावना है कि जाति के नाम पर राजनीति करने वाले दल किसी और राज्य से आकर यहां कुछ कर पाएं।' योगेन्द्र ने कहा कि ये दल उन्हीं वोटर्स को काट भी पाएंगे जो जाति के नाम पर वोट करते हैं, और ऐसे वोटर्स बेहद कम हैं। उन्होंने कहा कि अगर असल में इसका नुकसान किसी को होगा, तो यूपी के ऐसे क्षेत्रीय दलों को होगा, जो जाति के नाम पर वोट का माहौल बनाते हैं।

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