युगो युगो से है इस प्राचीन पेड़ की ये महत्ता, पीएम मोदी भी करने आए थे दर्शन

कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने वन जाते समय इस वट वृक्ष के नीचे तीन रात तक निवास किया था। यहां किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर में अक्षय वट के अलावा 43 देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है।

प्रयागराज (Uttar Pradesh) । संगम तट पर लगे माघ मेले में श्रद्धालुओं और कल्पवासियों का जमघट लग गया है। एक महीने तक कई शंकराचार्यों समेत देश भर के साधु-संत यहां भक्ति-ज्ञान और आध्यात्म की गंगा बहाएंगे। प्रशासन का दावा है कि इस बार छह प्रमुख स्नान पर्वों पर पांच करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आएंगे, लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां अक्षय वट का दर्शन काफी फलदायी होता है, जिसकी युगो-युगो से विशेष महत्ता है। बता दें कि महत्ता को जानने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी भी साल 2018 में इस वट का दर्शन करने पहुंचे थे।

राम-सीता ने गुजारे थे तीन रात
कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने वन जाते समय इस वट वृक्ष के नीचे तीन रात तक निवास किया था। यहां किले के अंदर स्थित पातालपुरी मंदिर में अक्षय वट के अलावा 43 देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है।

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यह भी वट की महत्ता
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक ऋषि ने भगवान नारायण से ईश्वरीय शक्ति दिखाने के लिए कहा था। तब उन्होंने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया था। फिर इस पानी को गायब भी कर दिया था। इस दौरान जब सारी चीजें पानी में समा गई थी, तब अक्षय वट (बरगद का पेड़) का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था।

मुगल शासकों ने कर दिया था प्रतिबंधित
पौराणिक और ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार मुक्ति की इच्छा से श्रद्धालु इस बरगद की ऊंची डालों पर चढ़कर कूद जाते थे। मुगल शासकों ने यह प्रथा खत्म कर दी। अक्षयवट को भी आम तीर्थ यात्रियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इस वृक्ष को कालांतर में नुकसान पहुंचाने का विवरण भी मिलता है। आज का अक्षयवट पातालपुरी मंदिर में स्थित है। यहां एक विशाल तहखाने में अनेक देवताओं के साथ बरगद की शाखा रखी हुई है। इसे तीर्थयात्री अक्षयवट के रूप में पूजते हैं।

अक्षय वट वृक्ष के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी
बताया जाता है कि ब्रह्मा जी ने शूल टंकेश्वर शिवलिंग स्थापित किया था, शूल टंकेश्वर मंदिर में जलाभिषेक करने पर जल सीधे अक्षय वट की जड़ में जाता है। वहां से जमीन के अंदर से होते हुए संगम में मिलता है। मान्यता है कि अक्षय वट वृक्ष के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी भी बहती है। संगम स्नान के बाद अक्षय वट का दर्शन और पूजन यहां वंशवृद्धि से लेकर धन-धान्य की संपूर्णता तक की मनौती पूर्ण होती है।

यह है मान्यता
मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर-दूर तक फैली हैं। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस स्थान पर एक पैसा चढ़ाता है, उसे एक हजार स्वर्ण मुद्रा चढ़ाने का फल मिलता है। 

प्रयाग नाम के पीछे ये है मान्यता
मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने वट वृक्ष के नीचे पहला यज्ञ किया था। इसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं का आह्वान किया गया था। यज्ञ समाप्त होने के बाद ही इस नगरी का नाम प्रयाग रखा गया था, जिसमें 'प्र' का अर्थ प्रथम और 'त्याग' का अर्थ यज्ञ से है।

(फाइल फोटो)

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