पति को बचाने के लिए सारे गहने गिरवी रखने पड़े, फिर भी मिली लाश..कर्ज लेकर करना पड़ा अंतिम संस्कार

Published : May 10, 2021, 05:43 PM IST
पति को बचाने के लिए सारे गहने गिरवी रखने पड़े, फिर भी मिली लाश..कर्ज लेकर करना पड़ा अंतिम संस्कार

सार

 यह बेबसी की कहानी रेखा श्रीवास्तव नाम की महिला की है, जो कि अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी गोरखपुर में रहती थी। लेकिन कोरोना को शायद यह खुशी मंजूर नहीं थी। 20 अप्रैल को उसके पति अमरेंद्र की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। महिला ने दो दिन तक अपनी 8 साल की बेटी और 12 साल के बेटे के साथ दर-दर भटकती रही। 

गोरखपुर (उत्तर प्रदेश). कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने कई हंसते-खेलते परिवारों को तबाह कर दिया। तो कई को बीच सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। घर-जमीन बेचकर भी अपनों का इलाज कराया, इसके बाद भी उनको नहीं बचा सके। ऐसी एक मार्मिक घटना यूपी के गोरखपुर से सामने आई है। जहां पत्नी ने अपने पति के इलाज कराने के लिए सारे गहने तक गिरवी रख दिए। लेकिन फिर भी उसके हाथ लाश ही मिली। हद तो तब हो गई जब उसे अंतिम संस्कार कराने के लिए उधार पैसा लेना पड़ गया।

पति के लिए दो बच्चों को लेकर भटकती रही पत्नी
दरअसल, यह बेबसी की कहानी रेखा श्रीवास्तव नाम की महिला की है, जो कि अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी गोरखपुर में रहती थी। लेकिन कोरोना को शायद यह खुशी मंजूर नहीं थी। 20 अप्रैल को उसके पति अमरेंद्र की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। जिसके कुछ देर बाद अचानक तबीयत बिगड़ने लगी। महिला ने दो दिन तक अपनी 8 साल की बेटी और 12 साल के बेटे के साथ दर-दर भटकती रही। लेकिन किसी भी अस्पताल में उसके पति के लिए कोई बेड नहीं मिला।

सारे गहने बेचने के बाद भी नहीं बचा सुहाग
महिला को किसी तरह 22 अप्रैल को एक निजी अस्पताल में बेड मिल गया। हॉस्पिटल वालों ने उसे  50 हजार रुपए जमा करने का कहा। फिर उससे 70 हजार रुपए लिए गए। लेकिन इसके बाद उसे वेंटिलेटर नहीं मिला। इस तरह महिला ने अपने पति को ठीक करने के लिए सारे जेवर बेचकर डेढ़ लाख रुपए खर्च कर दिए। लेकिन फिर उसे निराशा हाथ लगी। अस्पताल ने तीसरे दिन पति की लाश उसे दे दी।

श्मशान में 2 हजार की लकड़ी 5 हजार में मिली
इतना ही नहीं जब वह शव को श्मशान ले जाने लगी तो उसे कोई गाड़ी नहीं मिली। एक एंबुलेंस वाले ने 10 हजार रुपए लिए तब कहीं जाकर वह शव ले जाने के लिए तैयार हुआ है। रेखा को श्मशान घाट पर 2 हजार की लकड़ी 5 हजार में मिली। इसके बाद मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार करने वाले ने भी 8 हजार रुपए लिए, तब कहीं जाकर अंतिम संस्कार किया। वह श्मशान में रोने लगी और कहती अब पता चला कि कोरोना के नाम पर कैसे लूटा जा रहा है। यह मैंने पहली बार देखा कि इंसान पैसे के लिए कितना गिर गया है। भगवान के घर जाकर इन सबको हिसाब देना होगा। मुझे नहीं पता क्या सही है क्या गलत है।
 

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