ज्ञानवापी सर्वे: शिवलिंग या फव्वारा के बीच संशय को लेकर इतिहासकार ने किया बड़ा खुलासा, जानिए क्या है सच

ज्ञानवापी सर्वे के दौरान मिले कथित शिवलिंग को लेकर संशय बरकरार है। इतिहासकारों का भी कहना है कि इसको लेकर आधिकारिक पुष्टि जांच के बाद ही हो पाएगी। हालांकि जो तथ्य अभी तक सामने आए हैं उसके बाद इसे शिवलिंग कहने से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

वाराणसी: ज्ञानवापी केस में कमीशन की कार्यवाही के दौरान कथित शिवलिंग मिलने के मामले को लेकर लगातार बहस जारी है। इस बीच हिंदू पक्ष की ओर से दावा किया गया है कि यह बाबा का प्राचीन शिवलिंग है। हालांकि मुस्लिम समुदाय की ओर से इसे फव्वारा बताया जा रहा है। इस बीच बीएचयू के इतिहास विभाग के प्रोफेसर ने इसे लेकर बड़ा खुलासा किया है। मीडिया रिपोर्टस में प्रोफेसर बिंदा परांजपे की ओऱ से कहा गया कि जिस तरह का कथित  शिवलिंग मिला है उसके शिवलिंग होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

शिवलिंग का तालाब औऱ पानी से पुराना संबंध 
उन्होंने कहा कि इस तरह के शिवलिंग प्राचीन समय में पाए जाते थे। पानी या तालाब से शिवलिंग का पुराना सम्बंध है। लिहाजा जो प्राप्त हुए हैं उसे शिवलिंग होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। एक अन्य इतिहासकार ने दावा किया कि स्कंद पुराण में काशी में कई महाशिवलिंग का जिक्र मिलता है। ऐसे में जो दावा हिंदू पक्ष की ओर से किया जा रहा है वह भी संभव है। 12 फीट से ज्यादा की ऊंचाई के शिवलिंग का भी होना संभव है। हालांकि पुरातात्विक सर्वेक्षण और कार्बन डेटिंग के जरिए उसकी प्राचीनता का पता लगाया जा सकता है। 

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फव्वारे को लेकर संशय बरकरार
प्रोफेसर ने कहा कि मध्यकाल के दौरान भी फव्वारे का जिक्र मिलता है। हालांकि उस समय आज के जैसी तकनीक नहीं थी। लिहाजा फव्वारे को चलाने के लिए पानी का दवाब क्षेत्र ऊंचाई पर पानी का संग्रह करके बनाया जाता था। हालांकि इसके प्रमाण 14वीं शताब्दी में मिलते हैं। हालांकि ज्ञानवापी क्षेत्र में इस तरह की कोई भी चीज नजर नहीं आती है। लिहाजा फव्वारे को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। वहीं प्रोफेसर अनुराधा के द्वारा बताया गया कि वाराणसी में शैव सम्प्रदाय का गढ़ है। शैव सम्प्रदाय में आत किसी इस आकार के फव्वारे को नहीं देखा गया। हालांकि कथित शिवलिंग के सच को लेकर उनका कहना है कि इस बारे में कोई भी पुष्टि जांच के बाद ही हो सकती है। 

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