वीडियो डेस्क। हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह की अमावस्या पर कई तरह के धार्मिक कार्य जैसे श्राद्ध, तर्पण, पूजा-पाठ और दान किए जाते हैं। ग्रंथों के अनुसार इस तिथि पर कालसर्प दोष निवारण और शनि दोष शांति के लिए पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 22 और 23 अप्रैल को है।
वीडियो डेस्क। हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह की अमावस्या पर कई तरह के धार्मिक कार्य जैसे श्राद्ध, तर्पण, पूजा-पाठ और दान किए जाते हैं। ग्रंथों के अनुसार इस तिथि पर कालसर्प दोष निवारण और शनि दोष शांति के लिए पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 22 और 23 अप्रैल को है।
काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्रा के अनुसार हिंदू कैलेंडर की गणना में अमावस्या तीसवीं तिथि होती है। यानी कृष्णपक्ष का आखिरी दिन अमावस्या तिथि कहलाता है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है। इसलिए इन 2 ग्रहों की विशेष स्थिति से इस तिथि पर पितरों के लिए की गई पूजा और दान का विशेष महत्व होता है।
क्यों विशेष है वैशाख अमावस्या?
वैशाख माह की अमावस्या पर पितरों की विशेष पूजा करनी चाहिए। इस तिथि पर पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध करना चाहिए। ये सब संभव न हो तो इस तिथि पर पितरों की तृप्ति के लिए व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए और इस दिन अन्न एवं जल का दान करना चाहिए। वैशाख महीने की अमावस्या को कई जगहों पर सत्तू का दान भी दिया जाता है। इसलिए इसे सतुवाई अमावस्या भी कहा जाता है।
वैशाख अमावस्या पर पितरों की तृप्ति के लिए ये करें-
1. घर पर ही पानी में तिल डालकर नहाएं।
2. इस पर्व पर चावल बनाकर पितरों को धूप दें।
3. सुबह पीपल के पेड़ पर जल और कच्चा दूध चढ़ाएं।
4. पितरों की तृप्ति के लिए संकल्प लेकर अन्न और जल का दान करें।
5. ब्राह्मण भोजन करवाएं या किसी मंदिर में 1 व्यक्ति के जितना भोजन दान करें।
6. बनाए गए भोजन में से सबसे पहले गाय फिर कुत्ते और फिर कौवे के लिए हिस्सा निकालें।