मैं कुंदनपुर हूं, यूपी के औरैया जिले में बसा एक छोटा सा कस्बा। कभी कभी अखबार की या चैनलों की सुर्खियों में आपने मेरा नाम जरूर सुना होगा। मैं किसी पहचान का मोहताज नहीं हूं मेरी पहचान ही मेरे कृष्ण हैं। मैं कुंदनपुर हू भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल। मैं वहीं हूं जिसका जिक्र आपने पुराणों में सुना होगा। मैं भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी के प्रेम का साक्षी हूं।
मैं कुंदनपुर हूं, यूपी के औरैया जिले में बसा एक छोटा सा कस्बा। कभी कभी अखबार की या चैनलों की सुर्खियों में आपने मेरा नाम जरूर सुना होगा। मैं किसी पहचान का मोहताज नहीं हूं मेरी पहचान ही मेरे कृष्ण हैं। मैं कुंदनपुर हू भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल। मैं वहीं हूं जिसका जिक्र आपने पुराणों में सुना होगा। मैं भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी के प्रेम का साक्षी हूं। मैं ही हूं जहां मेरे कृष्ण ने देवी रुक्मणी का हरण कर उनसे विवाह किया था। वो मंदिर भी यहीं हैं जहां पहली बार रुक्मणी ने मनमोहक कृष्ण छवि देखी थी। मैं कृष्ण की ससुराल हूं। मेरी पहचान किसी धार्मिक नगरी के रूप में नहीं है ना ही मैं कभी लोगों की आस्था का केंद्र रहा हूं। लेकिन यदा कदा कृष्ण के सुमिरन के साथ मेरा जिक्र भी लोगों की जुबां पर आ जाता है। मैं कुंदनपुर हूं भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल। मैं ही हूं जहां कृष्ण ने रुक्मणी के भाई रुक्मी को दण्ड दिया था। मैं ही हूं जहां कृष्ण को दामाद के रूप में पूजा जाता है। मैं वहीं हूं जहां कृष्ण राधा के नहीं रुक्मणी के कहलाए थे। यहां वे बृज के ग्वाला नहीं द्वारिकाधीश कहलाए थे। मैं वो कुंदनपुर हूं जो कृष्ण जन्मोत्सव के लिए सजा हुआ हूं। लोगों में उत्साह और उमंग है अपने प्रिय दामाद का जन्मदिन मनाने के लिए। पालने में गोविंद झूलेंगे। घर घर त्योहार मनाया जाएगा। पाग पंजरी से भोग लगेगा हर घर में उत्सव और हर मंदिर में होगा कृष्ण जन्म। मथुरा वृन्दावन की तरह ही मैं कुंदनपुर भी कृष्ण की चरण रज लेकर खुद पर इतराता हूं। मैं कुंदनपुर हूं भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल। अब मेरा भी नाम बदल गया है जब भगवान ने रुक्मणी का हरण किया तो उनके भाई रुक्मी ने यहां लोगों को हाथियों से कुचलवा दिया। तब मेरा नाम कुदरकोट हुआ। लेकिन मेरी पहचान कृष्ण की ससुराल है।