आपको अभी तक नहीं पता होगा सबसे पहले किसने रखा था छठी मईया का व्रत... जानें छठ पर्व का ये गुप्त रहस्य

आपको अभी तक नहीं पता होगा सबसे पहले किसने रखा था छठी मईया का व्रत... जानें छठ पर्व का ये गुप्त रहस्य

Published : Nov 19, 2020, 03:28 PM IST

वीडियो डेस्क। छठ पूजा का पावन पर्व शुरू हो गया है। नहाय खाय के साथ छठ का व्रत शुरू हुआ। छठ पर्व को लेकर लोगों में भारी आस्था है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठ पर्व कैसे शुरू हुआ और सबसे पहले किसने छठ व्रत किया था। 

वीडियो डेस्क। छठ पूजा का पावन पर्व शुरू हो गया है। नहाय खाय के साथ छठ का व्रत शुरू हुआ। छठ पर्व को लेकर लोगों में भारी आस्था है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठ पर्व कैसे शुरू हुआ और सबसे पहले किसने छठ व्रत किया था। 
श्रीमद्देवी भागवत पुराण के अनुसार- स्वायम्भुव मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को अधिक समय बीत जाने के बाद भी कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिससे गर्भ तो ठहर गया, किंतु मृत पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रियवत उस मृत बालक को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवत ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। मृत बालक को भूमि पर रखकर राजा ने उस देवी को प्रणाम किया और पूछा- हे सुव्रते! आप कौन हैं?
देवी ने आगे कहा- तुम मेरा पूजन करो और अन्य लोगों से भी कराओ। इस प्रकार कहकर देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। राजा ने उसी दिन घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। चूंकि यह पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी, अत: इस विधि को षष्ठी देवी/छठ देवी का व्रत होने लगा।

सीता व द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा
मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन उपवास रखकर भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी के दिन व्रत पूर्ण किया। पवित्र सरयू के तट पर राम-सीता के इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएं में हारकर जंगल-जंगल भटक रहे थे, तब इस दुर्दशा से छुटकारा पाने के लिए द्रौपदी ने सूर्यदेव की आराधना के लिए छठ व्रत किया। इस व्रत को करने के बाद पांडवों को अपना खोया हुआ वैभव पुन: प्राप्त हो गया था।

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