बाइक पर बैठा कमर से बांधकर मरीजों को अस्पताल पहुंचाता है ये शख्स, अब तक बचाई 5000 जानें

समाज सेवाओं के लिए करीमुल हक को पिछले साल पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। लेकिन अब उन्हें लगता है कि वह आने वाले टाइम में यह काम नहीं कर सकते। उनका सपना गांव के लिए उनके घर के पास एक निःशुल्क अस्पताल बनवाने का है।

Asianet News Hindi | Published : Dec 3, 2019 12:01 PM IST / Updated: Dec 03 2019, 05:45 PM IST

कोलकाता. अपनों को खोने का दर्द इंसान को बेबस और लाचार कर देता है। वहीं कुछ लोग इस दर्द को ताकत बना लेते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं पश्चिम बंगाल के करीमुल हक़ जिन्होंने 30 साल पहले अपनी मां को खो दिया था। मां की मौत एंबुलेंस का खर्च न उठा पाने की वजह से हुई थी। उस समय किसी ने भी उनकी मदद नहीं की थी। इस दर्द ने हक़ को अंदर तक झकझोर दिया था।

एक बार उनका दोस्त बीमार हो गया तो हक़ ने अपने दोस्त को कमर पर बांधा और 50 किमी. बाइक चलाकर उसे अस्पताल पहुंचाया। इसके बाद हक़ सोच में पड़ गए कि दुनिया में गरीब लोग समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण जान गंवा देते हैं। तभी से उन्होंने ठान लिया कि वह लोगों को अस्पताल पहुंचाने में मदद करेंगे। 

कमर से मरीजों को बांधकर पहुंचाते हैं अस्पताल

इसके बाद उन्होंने मोटरबाइक पर एंबुलेंस सेवा शुरू कर दी। हक ने बताया कि, मेरी मां की मौत घर पर हो गई, उस समय मैं एंबुलेंस का खर्चा नहीं उठा सकता था। तबसे मैंने ठान लिया कि गरीबों की मदद करूंगा। इसके बाद हक ने अपनी जमापूंजी से एक बाइक खरीदी जिसे उन्होंने बाइक एंबुलेंस बना दिया। इस बाइक पर वह मरीजों को बैठा कम से बांधकर अस्पताल ले जाते हैं। आपको बता दें कि वह अब तक करीब 5 हजार लोगों की जान बचा चुके हैं। 

ली प्रोफेशनल मेडिकल ट्रेनिंग

इसके बाद वह 'एम्बुलेंस दादा' के नाम से मशहूर हो गए। करीमुल ने अपने मिशन में मदद करने के लिए सैलरी के 4,000 रुपये भी खर्च किए। एम्बुलेंस सेवा के अलावा, उन्होंने जरूरतमंद लोगों को प्राथमिक चिकित्सा देने करने और जनजातीय क्षेत्रों में नियमित स्वास्थ्य शिविर आयोजित करने के लिए खुद को प्रशिक्षित किया है।

पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित 

समाज सेवा के लिए करीमुल हक को पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। लेकिन अब उन्हें लगता है कि वह आने वाले टाइम में यह काम नहीं कर सकते। उनका सपना गांव के लिए उनके घर के पास एक निःशुल्क अस्पताल बनवाने का है। उससे गरीब लोग के लिए गांव में ही स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध होगी और उन्हें बचाया जाएगा।

गांव में अस्पताल बनाने का सपना

एंबुलेंस दादा कहते हैं कि, "मैं अपने घर के बाहर एक देखभाल केंद्र बनाना चाहता हूं ताकि लोगों को गांव से बाहर इलाज के लिए न जाना पड़े। हालांकि मैं यह काम करता रहना चाहता हूं और फिर, जब मैं मर जाऊंगा, मेरे दो बेटे मेरे मिशन को आगे बढ़ाएंगे।" एंबुलेंस दादा के गांव में अस्पताल बनाने के लिए लोगों का सपोर्ट मिल रहा है। डोनेशन के जरिए लोग उनकी मदद करने लगे हैं। 

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