अच्छी-खासी नौकरी छोड़ बेटा बन गया सन्यासी, तो दिव्यांग माता-पिता ने ठोंक दिया मुकदमा

गुजरात के अहमदबाद में फैमिली कोर्ट ने एक माता-पिता द्वारा अपने बेटे पर दायर मुक़दमे पर फैसला सुनाते हुए बेटे को उनकी देखभाल के लिए हर महीने 10 हजार रुपए देने का आदेश दिया है। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 17, 2019 10:26 AM IST

अहमदाबाद: माता-पिता अपने बच्चे के ऊपर सबकुछ न्योछावर कर देते हैं। वो अपनी पूरी जिंदगी बच्चों में इन्वेस्ट कर देते हैं। ये सोचकर कि जब बच्चा सेटल हो जाएगा तो उनकी जिंदगी की सारी तकलीफ दूर हो जाएगी।  लेकिन कई बार बच्चे इस बात को नजरअंदाज कर अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने लगते हैं और माता-पिता को बेसहारा छोड़ देते हैं। इसके बाद पेरेंट्स के पास भी कोई ऑप्शन नहीं बचता। लेकिन अहमदाबाद में रहने वाले एक पेरेंट्स ने ऐसी ही हरकत करने वाले अपने बेटे के ऊपर मुकदमा ठोंक दिया। 

नौकरी छोड़ सन्यासी बना बेटा 
अहमदाबाद के फैमिली कोर्ट में एक कपल ने अपने ही बेटे के खिलाफ केस कर्ज किया। उन्होंने अपने बेटे पर आरोप लगाया कि उनलोगों ने अपने बेटे की पढ़ाई पर सारी जमापूंजी खर्च कर दी। लेकिन इसके बाद बेटे ने अपनी नौकरी छोड़ दी और सन्यासी बन गया। अब वो उनके साथ नहीं रहता और ना ही उनका खर्च उठाता है। 

पढ़ाई में खर्च कर दी सारी सेविंग्स 
शिकायत में पेरेंट्स ने बताया कि दोनों दिव्यांग हैं। उन्होंने काफी मेहनत कर अपने बेटे धर्मेश गोल को फार्मेसी में मास्टर्स करवाया। बेटे की पढ़ाई में उन्होंने गांव में रखे अपने 35 लाख के खेत भी बेच दिए। इसके बाद धर्मेश की एक कंपनी में नौकरी लग गई और वहां उसे साठ हजार रुपए सैलरी मिलने लगी। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद उसने नौकरी छोड़ दी और सन्यासी बन गया। उसने घर छोड़ दिया और एक एनजीओ से जुड़ गया। उसने अपने माता-पिता से सारे रिश्ते तोड़ दिए। अब वो उनके लिए एक रुपया भी नहीं भेजता। 

पेरेंट्स ने मांगा था मेंटेनन्स कॉस्ट 
शिकायत में माता-पिता ने बेटे से 50 हजार रुपए मांगे थे। सुनवाई के दौरान पता चला कि धर्मेश को फिलहाल कई संस्थानों में पढ़ाने के बदले एक लाख रुपए मिलते हैं। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बेटे का ये फर्ज है कि वो अपने लाचार माता-पिता का ध्यान रखे। कोर्ट ने धर्मेश को अपने माता-पिता को हर महीने दस हजार रुपए देने का आदेश दिया है। 
 

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