38 मिनट चला था दुनिया का सबसे छोटा युद्ध

Published : Aug 27, 2019, 09:43 AM ISTUpdated : Aug 27, 2019, 07:22 PM IST
38 मिनट चला था दुनिया का सबसे छोटा युद्ध

सार

आज दुनिया के सबसे छोटे चले युद्ध की 123वीं वर्षगांठ है। यह युद्ध ब्रिटेन और ईस्ट अफ्रीका के ब्रिटिश प्रभुत्व वाले क्षेत्र जांजीबार के सुल्तान के बीच हुआ था। 

लंदन। साल 1896 में हुआ एंग्लो-जांजीबार युद्ध दुनिया के इतिहास में सबसे छोटा युद्ध माना जाता है। यह युद्ध सिर्फ 38 मिनट तक चला, लेकिन इसमें करीब 500 सैनिक मारे गए। आज इस युद्ध की 123वीं वर्षगांठ पर डालते हैं एक नजर कि कैसे शुरू हुआ यह युद्ध और क्या रहा घटनाक्रम।

यह कहानी साल 1890 में ब्रिटेन और जर्मनी के बीच हेलिगोलैंड-जांजीबार समझौते से शुरू होती है। इस समझौते के तहत ईस्ट अफ्रीका का जांजीबार क्षेत्र ब्रिटेन ने ले लिया था, जबकि मुख्य क्षेत्र तंजानिया पर जर्मनी का नियंत्रण था। इस संधि के बाद ब्रिटेन ने जांजीबार को अपना संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया और वहां हमद बिन थुवैनी को सुल्तान के रूप में बैठा दिया जो पूरी तरह से ब्रिटिश समर्थक था। ब्रिटेन उसे अपने हुक्म का गुलाम मानता था। साल 1893 में ब्रिटेन ने उसे जांजीबार के सुल्तान के रूप में मान्यता दी। लेकिन सिर्फ तीन साल बाद 25 अगस्त, 1896 को सुल्तान की मौत हो गई।

सुल्तान का चचेरा भाई बैठा सिंहासन पर
इसके बाद सुल्तान के चचेरे भाई ने खालिद बिन बरगश ने सत्ता हथिया ली। वह ब्रिटिश विरोधी था और अपने देश को आजाद करना चाहता था। हमद बिन थुवैनी की मृत्यु के कुछ ही समय के भीतर बिना उनकी अनुमति के खालिद बिन बरगश द्वारा खुद को सुल्तान घोषित कर दिए जाने से ब्रिटिश डिप्लोमैट्स बहुत नाराज थे। उन्हें यह भी पता था कि खालिद ब्रिटिश विरोधी है। इसके तत्काल बाद इलाके के प्र्मुख डिप्लोमैट बासिल केव ने खालिद को सुल्तान के पद से हट जाने को को कहा, लेकिन खालिद ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। खालिद ने अपने महल के पास फौज जुटानी शुरू कर दी। इससे ब्रिटिश डिप्लोमैट्स की समझ में यह बात आ गई कि खालिद उनके कहने भर से सत्ता छोड़ने वाला नहीं है। 

खालिद पर था सुल्तान को जहर देने का संदेह
हमद बिन थुवैनी की मौत रहस्यमय तरीके से हुई। कोई भी नहीं जान सका कि आखिर ठीक ठाक रहा सुल्तान अचानक मर कैसे गया। ब्रिटिश समर्थकों और राजदूतों को यह संदेह था कि खालिद ने सुल्तान को जहर दे दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। 

3000 सैनिक मौजूद थे सुल्तान के महल के पास
खालिद ने 25 अगस्त तक अपने महल के पास 3000 सैनिकों की तैनाती कर दी। लेकिन इनके पास जो तोपें और बंदूकें थीं, वो अंग्रेजों ने खालिद के पहले सुल्तान रहे उसके चाचा हमद बिन थुनैवी को उपहार के रूप में दी थीं। खालिद ने हार्बर में भी एक आर्म्ड रॉयल याट तैनात कर दिया। 

ब्रिटिश सरकार ने दी खालिद को चेतावनी
ब्रिटिश सरकार सुल्तान के रूप में हामूद बिन मुहम्मद को जगह देना चाहती थी। खालिद को स्थानीय ब्रिटिश वारिस को गद्दी सौंपने के लिए 27 अगस्त, 1896 को 9 बजे सुबह तक का समय दिया गया।

खालिद ने गद्दी छोड़ने से कर दिया इनकार
खालिद ने गद्दी छोड़ने से इनकार कर दिया और लगभग 3000 सैनिकों के साथ महल में डटा रहा। इसके बाद अंग्रेजों के सामने युद्ध के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था। मुख्य राजदूत केव ने ब्रिटेन के फॉरेन ऑफिस को एक टेलिग्राम भेजा, क्योंकि उसे पता था कि बिना ब्रिटिश सरकार की स्पष्ट स्वीकृति के अपने स्तर पर वह कोई युद्ध नहीं छेड़ सकता था। जबकि उसने तैयारी पूरी कर ली थी। तुरंत उसे सुल्तान के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू करने की इजाजात मिल गई और दूसरे ही दिन हार्बर में दो और ब्रिटिश वॉरशिप आ गई, जिनके नाम थे एचएमएस रैकून और एचएमएस सेंट जॉर्ज। 

और शुरू हो गया इतिहास का सबसे छोटा युद्ध
अंग्रेजों ने 5 ब्रिटिश रॉयल नेवी जहाजों, दो गनबोट, 150 मरीन और 900 जंजीरी सैनिकों के साथ महल को घेर लिया। ठीक सुबह 9 बजे जब खालिद ने पद और महल छोड़ने से इनकार कर दिया, तो ब्रिटिश बमबारी शुरू हुई। जहाजों के तोपों ने सुल्तान के महल में गोलीबारी की। लकड़ी की संरचना वाला महल तहस-नहस हो गया। ब्रिटिश फायरिंग 9.40 पर बंद हो गई। खालिद के 500 सैनिक मारे गए, जबकि बस एक ब्रिटिश सैनिक घायल हुआ, जिसकी जान बचा ली गई। खालिद महल के पिछले दरवाजे से भाग गया और उसने जर्मन वाणिज्य दूतावास में शरण ले लिया। इसके बाद अंग्रेजों ने दोपहर तक एक नये सुल्तान हामुद को जांजीबार की गद्दी पर बैठा दिया जिसने अगले 6 साल तक वहां सत्ता संभाली।

क्या हुआ खालिद का 
खालिद अपने कुछ समर्थकों के साथ जर्मन दूतावास में चला गया था। ब्रिटेन ने लगातार उसके प्रत्यर्पण की मांग की, पर जर्मनी ने उसे नौसेना की सहायता से तंजानिया भेज दिया। आखिर 1916 में जब ब्रिटिश सेना ने ईस्ट अफ्रीका पर हमला किया तो 1916 में खालिद को पकड़ा गया और उसे सेंट हेलेना द्वीप पर निर्वासित कर दिया। निर्वासन का समय बिताने के बाद उसे वापस ईस्ट अफ्रीका आने की अनुमति मिली, जहां 1927 में उसकी मौत हो गई। 
 

PREV

Recommended Stories

Dhurandhar में कौन किस पर भारी, R Madhavan ने अक्षय खन्ना को दिखाया आइना
विदाउट हेलमेट शख्स का क्यों कुछ नहीं कर पाई यातायात पुलिस, स्टील बर्ड कंपनी ने दिया बड़ा ऑफर