West Bengal: कैसे दलित वोटर बिगाड़ रहे TMC का चुनावी गणित, भाजपा के लिए साबित हो सकता है निर्णायक

 2019 लोकसभा चुनाव की सबसे खास बात ये थी कि बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों का वोट बड़ी मात्रा में भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ था। जहां इस चुनाव में लेफ्ट का सूपड़ा साफ हो गया, वहीं, कांग्रेस महज 2 सीटों पर सिमट गई। जबकि भाजपा और लेफ्ट का लगभग बराबर वोट प्रतिशत और सीटें रहीं। 

Asianet News Hindi | Published : Mar 19, 2021 9:13 AM IST / Updated: Mar 19 2021, 02:46 PM IST

कोलकाता.  2019 लोकसभा चुनाव की सबसे खास बात ये थी कि बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों का वोट बड़ी मात्रा में भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ था। जहां इस चुनाव में लेफ्ट का सूपड़ा साफ हो गया, वहीं, कांग्रेस महज 2 सीटों पर सिमट गई। जबकि भाजपा और लेफ्ट का लगभग बराबर वोट प्रतिशत और सीटें रहीं। 

swarajyamag.com की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में सभी के जुबान पर एक ही सवाल है कि क्या भाजपा उस प्रदर्शन को दोहरा पाएगी और राज्य में 148 सीटें जीतकर बहुमत हासिल कर पाएगी। हालांकि, भाजपा ने 294 सीटों वाले बंगाल में 200 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। अब देखते हैं कि क्या होता है?

इसे जानने का एक तरीका ओपिनियन पोल भी है। पिछले हफ्ते C-Voter Times Now का पोल सामने आया था। इसमें दावा किया गया था कि टीएमसी को 42% वोट मिलते दिख रहे हैं। इसी के साथ पार्टी राज्य में 146 से 162 सीटें जीत सकती है। जबकि भाजपा 38% वोटों के साथ 99-115 सीटें जीतती नजर आ रही है। 

कांग्रेस गठबंधन को 29-37 सीटें मिलने का अनुमान
इस चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट साथ में चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में पोल में गठबंधन को 15% वोट मिलता दिख रहा है। इसके साथ ही 29-37 सीटें मिलने का अनुमान है। यह पोल दर्शाता है कि इस बार भी बंगाल में विधानसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह नजर आ रहा है। जहां मुख्य मुकाबला भाजपा और टीएमसी के बीच है। 

हालांकि, इस पोल को अभी पूरा नहीं माना जा सकता है। क्योंकि TMC से भाजपा में नेताओं का पलायन जारी है। इसके अलावा भाजपा का चुनावी अभियान अभी तक चरम पर नहीं पहुंचा है। इसके अलावा वाम-आईएसएफ-कांग्रेस को मिलने वाला हर वोट का मतलब टीएमसी के लिए वोट का कम होना है। इसका मतलब ये है कि दर्जनों सीट पर भाजपा और टीएमसी के बीच मुकाबला कांटे का होगा। यह जीत के अंतर को लगातार कम कर रहा है, इसके साथ ही वोटरों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। 
 
ऐसे में हम नंबर पर ज्यादा ध्यान ना दें, ये चुनाव के आखिरी दिन तक बदल सकते हैं। हमें साफ तस्वीर देखनी है तो बंगाल की वर्तनाम जनसांख्यिकीय बदलावों के विश्लेषण को देखने की जरूरत है। यह अहम है, क्योंकि बहुत सारे वोट स्विंग हो रहे हैं। इसके लिए हमें यह देखना होगा कि कैसे भाजपा ने 2016 विधानसभा चुनाव से 2019 लोकसभा चुनाव के बीच प बंगाल में विपक्ष का स्थान हासिल किया। 2019 में व्यक्तिगत विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव नतीजों के इस्तेमाल से तुलना की जा सकती है। 



यह साफ है कि भाजपा के बढ़ने की वजह लेफ्ट के साफ होने और कांग्रेस के महज मुस्लिम बहुल क्षेत्रों तक सीमित होना है। भाजपा ने टीएमसी को नुकसान पहुंचाया, लेकिन उतना ज्यादा नहीं। 294 सीटों वाले राज्य में 164 विधानसभा सीटें मिलना यह आसानी से बताता है। राष्ट्रीय स्तर के ट्रेंड को फॉलो करते हुए ओबीसी वोट भाजपा में शामिल हुआ था। 

2021 में दलित-आदिवासी सीटों पर फोकस
जब हम देखते हैं कि विभिन्न दलों ने दलित और आदिवासी सीटों पर कैसा प्रदर्शन किया, तब 2021 की तस्वीर नजर आती है। बंगाल में 294 सीटों में से 81 एससी और एसटी के लिए रिजर्व हैं। यह काफी अहम है, क्योंकि टीएमसी का पारंपरिक वोटर मुस्लिम और दलित ही रहा है। ये दोनों समुदाय का वोट प बंगाल में करीब आधा है। 



कैसा रहा पार्टियों का प्रदर्शन
2016 की बात करें तो 81 सीटों में टीएमसी ने 59 सीटें जीती थीं। जबकि 2019 में देखें तो टीएमसी को सिर्फ 34 सीटें मिलतीं। यानी टीएमसी की कुल जितनी सीटें कम हुईं, उसमें से आधी एससी-एसटी आरक्षित सीटें थीं। 

वहीं, भाजपा की बात करें तो भाजपा 2019 में करीब 46 एससी-एसटी सीटें जीतती, यह कुल सीटों 121 का एक तिहाई से ज्यादा है। भाजपा को जो 45 सीटों का फायदा हुआ, उनमें से 32 टीएमसी की, 6 लेफ्ट की और 7 कांग्रेस की हैं। इससे साफ होता है कि 2019 में दलित वोट क्रमश: टीएमसी से भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ। अगर ओपिनियन पोल कुछ संकेत कर रहे हैं, तो भाजपा के प्रति वोटरों का रुझान अभी भी बहुत है। इसके अलावा यह भी नजर आ रहा है कि दलित वोट जो पहले लेफ्ट और कांग्रेस के साथ था, वह अब भाजपा में शिफ्ट हो रहा है। 

इसमें कोई दोराह नहीं है कि टीएमसी की पकड़ एससी-एसटी सीटों पर नहीं है। पार्टी ने 27 सीटें जीतीं। लेकिन जब हम देखते हैं तो यह पता चलता है कि इन सीटों पर मुस्लिम वोटरों का प्रभाव अधिक है। अगर दलित वोटर भाजपा की तरफ शिफ्ट होता रहा, तो यह नहीं कहा जा सकता कि 2021 में टीएमसी इन सीटों पर अपनी पकड़ बनाए रखेगी। 

इसमें कुछ बड़े नामों को जोड़ा जा सकता है, जो हाल ही में टीएमसी छोड़कर भाजपा में आए। जैसे दिनेश त्रिवेदी और अधिकारी परिवार और अन्य। यह चौंकाने वाला है कि त्रिवेदी 2019 में बैरकपुर सीट से जीते थे, लेकिन काफी कम अंतर से। इस इलाके में दलितों की आबादी 20% है। बिना त्रिवेदी और दलित वोटरों के इस क्षेत्र में टीएमसी को फाइट करना काफी मुश्किल होगा। 

पश्चिम बंगाल में चुनावों के अंत तक हमें ये दिलचस्प निष्कर्ष मिलते हैं


1- TMC के पारंपरिक वोट में काफी गिरावट हुई। यदि हाल के ओपिनियन पोल देखें तो यह पता नहीं चलता। क्योंकि टीएमसी से भाजपा में जाने वाला वोट लेफ्ट और कांग्रेस से टीएमसी में जाने वाले वोट से पूरा होता दिख रहा है। 

2-  दलित लगातार टीएमसी से भाजपा की ओर रुख कर रहा है। इसके अलावा वह भी भाजपा में शिफ्ट हो रहा है, जो लेफ्ट और कांग्रेस के साथ था। यानी दलित मुस्लिम वोट बैंक की पुरानी कहावत अब टूटती नजर आ रही है। 


3- आदिवासी वोट पहले ही भाजपा में जा चुका है, खासकर टीएमसी से।

4-  ये कि लेफ्ट पार्टियां 2019 चुनाव में किसी भी जगह नंबर जो पर नहीं रहीं। ऐसे में लेफ्ट ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। 

5- यह काफी अहम है। भाजपा के पक्ष में छोटी छोटी जातियों का एकजुट होना निश्चित है। वहीं, चुनावी नतीजे तय करने में मुस्लिम वोट लगातार अप्रासंगिक हो रहे हैं। वहीं, बंगाल में कांग्रेस और कम्युनिस्ट स्थाई राजनीतिक विस्मरण का सामना कर रहे हैं।

Share this article
click me!