
वर्ल्ड डेस्क। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो सोमवार को लिबरल पार्टी के नेता पद से इस्तीफा दे सकते हैं। इसके साथ ही उन्हें पीएम पद भी छोड़ना होगा। इसका असर भारत-कनाडा संबंधों पर जरूर पड़ेगा। ट्रूडो के शासनकाल में दोनों देशों के संबंध बेहद खराब हुए हैं।
ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत पर गंभीर आरोप लगाए। इसके बाद भारत-कनाडा के संबंध बिगड़ते चले गए। ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत सरकार के हाथ होने के आरोप लगाए, लेकिन कभी इसके सबूत नहीं दे सके। अगर ट्रूडो पद छोड़ते हैं तो इससे भारत-कनाडा संबंधों में एक नया अध्याय शुरू होने की उम्मीद है।
अगर लिबरल सत्ता में बने रहे: ऐसा होने पर नए प्रधानमंत्री को ट्रूडो की नीतियां विरासत में मिल सकती हैं। इसका मतलब होगा कि भारत और कनाडा के बीच तनाव जारी रहेगा।
यदि कंजर्वेटिव सत्ता में आए: कंजर्वेटिव सरकार भारत के प्रति अलग दृष्टिकोण अपना सकती है। भारत के साथ आर्थिक साझेदारी और वैश्विक मामलों में साथ मिलकर काम करने पर अधिक ध्यान दे सकती है। कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे का रुख अभी भी चिंताजनक है। पोलीवरे ने पिछले साल दिवाली के एक कार्यक्रम से खुद को अलग कर लिया था।
भारत के व्यापार मंत्रालय के अनुसार ट्रूडो के सत्ता में आने के बाद 31 मार्च 2024 को पिछले वित्तीय वर्ष के अंत तक कनाडा-भारत व्यापार बढ़कर 8.4 बिलियन डॉलर (72 हजार करोड़ रुपए से अधिक) हो गया। इसमें पिछले वर्ष की तुलना में मामूली वृद्धि हुई है।
कनाडा भारत को मुख्य रूप से खनिज, दालें, पोटाश, औद्योगिक रसायन और रत्न निर्यात करता है। वहीं, भारत दवाएं, समुद्री उत्पाद, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मोती और कीमती पत्थर भेजता है। दोनों देशों के संबंध सुधरते हैं तो इससे व्यापार बढ़ने की उम्मीद है।
ट्रूडो के कार्यकाल में कनाडा ने अपने लोकप्रिय फास्ट ट्रैक स्टडी वीजा कार्यक्रम समाप्त कर दिया। इसका असर भारत सहित दूसरे देशों से आने वाले छात्रों पर पड़ेगा। कनाडा में सबसे अधिक विदेशी छात्र भारतीय हैं। एक अनुमान के अनुसार 4.27 लाख भारतीय छात्र कनाडा में पढ़ रहे हैं।
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