
नई दिल्लीं। 10 और 11 नवंबर के दो दिन-दो देश, दो राजधानी और दो धमाके। दिल्ली के लाल किले के पास और इस्लामाबाद की अदालत के बाहर हुए इन विस्फोटों ने पूरे दक्षिण एशिया को झकझोर दिया। भारत में जांच एजेंसियां अब भी सबूतों को खंगाल रही हैं, जबकि पाकिस्तान में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर ये धमाके किसने और क्यों किए? इसी बीच, पेरिस में निर्वासन का जीवन बिता रहे पाकिस्तानी पत्रकार ताहा सिद्दीकी के एक ट्वीट ने इस पूरे घटनाक्रम को एक नया मोड़ दे दिया है। उन्होंने दावा किया है कि दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों ब्लास्ट में आत्मघाती हमलावर वही लोग थे जिन्हें पाकिस्तानी सेना अपनी ‘संपत्तियां’ (Assets) कहती है।
पाकिस्तानी पत्रकार ताहा सिद्दीकी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा-“पिछले 24 घंटों में दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों पर आत्मघाती हमलावरों ने हमला किया, जिन्हें पाकिस्तानी सेना अपनी संपत्तियाँ कहती है। जब तक जनरल इस्लामी आतंकवाद को घरेलू और विदेश नीति के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करते रहेंगे, शांति असंभव है।” उनकी इस छोटी सी पोस्ट ने बड़ा तूफान खड़ा कर दिया। कुछ लोग उनके समर्थन में आ गए, तो कुछ ने कहा कि यह “भारत-पक्षीय बयान” है। लेकिन सवाल यह है-क्या इस दावे में कोई सच्चाई हो सकती है?
10 नवंबर की शाम दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन गेट नंबर 1 के पास एक कार में जबरदस्त धमाका हुआ। इस विस्फोट में 13 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हुए। आंखों-देखे गवाहों ने बताया कि धमाका इतना ज़ोरदार था कि कई कारें पलट गईं और आसपास का इलाका आग की लपटों में घिर गया।
11 नवंबर को यानी दिल्ली ब्लास्ट के अगले ही दिन, पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के G-11 सेक्टर में जिला एवं सत्र न्यायालय के बाहर आत्मघाती विस्फोट हुआ। हमलावर अंदर घुसने की कोशिश में था, लेकिन नाकाम रहा और उसने पुलिस वाहन के पास खुद को उड़ा लिया।
पाकिस्तान तालिबान (TTP) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली और कहा कि उनका निशाना “न्यायिक और सुरक्षा अधिकारी” थे। पाकिस्तान सरकार ने इसे एक “बड़ी सुरक्षा विफलता” बताया और जांच के आदेश दिए।
ताहा सिद्दीकी एक पाकिस्तानी खोजी पत्रकार हैं जिन्होंने कई बार सेना और आईएसआई की नीतियों पर सवाल उठाए। 2018 में उनका इस्लामाबाद में अपहरण करने की कोशिश की गई थी। उसके बाद वह पेरिस भाग गए और वहीं से पाकिस्तान में “सत्ता और आतंकवाद” के गठजोड़ पर रिपोर्ट लिखते रहे। उनकी पोस्ट पर सोशल मीडिया पर हजारों प्रतिक्रियाएं आईं- कई लोगों ने कहा कि “वह सच बोल रहे हैं”, जबकि कुछ ने कहा कि “यह विदेशी एजेंडों की भाषा है”।
कई यूज़र्स ने लिखा कि पाकिस्तान की सेना ने दशकों से कुछ आतंकी संगठनों को “रणनीतिक संपत्ति” के रूप में इस्तेमाल किया। लेकिन अब वही संगठन, जैसे टीटीपी (पाकिस्तान तालिबान), उन्हीं पर हमला कर रहे हैं। कुछ का मानना है कि इस्लामाबाद ब्लास्ट उसी ‘रिवर्स ब्लोबैक’ का उदाहरण है। वहीं कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में हुआ दिल्ली ब्लास्ट “क्लोन ऑपरेशन” हो सकता है-अर्थात् किसी नेटवर्क ने जानबूझकर दोनों जगह धमाके करवाए ताकि यह लगे कि भारत और पाकिस्तान एक जैसी स्थिति में हैं।
ताहा सिद्दीकी ने अपने ट्वीट में लिखा था-“जब तक पाकिस्तान के जनरल आतंक को नीति का औजार बनाए रखेंगे, दक्षिण एशिया में शांति नामुमकिन है।” उनका यह वाक्य अब सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में गूंज रहा है। क्या वह सही हैं? या यह सिर्फ एक पत्रकार की चेतावनी है जिसे नजरअंदाज कर दिया जाएगा?
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