
नई दिल्ली। देश की सुरक्षा एजेंसियों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भारत को अस्थिर करने की हर कोशिश पर उनकी पैनी नज़र है। पिछले 48 घंटों के भीतर, पाकिस्तान, पीओके और दुबई से ऑपरेट होने वाले कई सोशल मीडिया हैंडल और मोबाइल नंबरों को ब्लॉक कर दिया गया। ये हैंडल जम्मू-कश्मीर के पुंछ, राजौरी, डोडा और किश्तवाड़ के युवाओं को कट्टरपंथ की तरफ धकेलने की कोशिश कर रहे थे। यह खुलासा इसलिए और अहम है क्योंकि दिल्ली विस्फोट की जांच में जैश-ए-मोहम्मद के व्हाइट-कॉलर आतंकियों का मॉड्यूल सामने आया था। इसी मॉड्यूल के पकड़े जाने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सोशल मीडिया पर असामान्य गतिविधियों की मॉनिटरिंग कर रही थीं। नतीजा—एक और बड़ी साजिश पकड़े जाने से पहले ही ध्वस्त कर दी गई।
अधिकारियों के अनुसार, ये सोशल मीडिया अकाउंट्स खास तौर पर उन युवाओं को टारगेट कर रहे थे जिनका झुकाव धार्मिक कट्टरपंथ की तरफ दिख रहा था। सबसे पहले उन्हें भेजा जाता था धार्मिक कंटेंट, फिर धीरे-धीरे भेजी जाने लगती थी भ्रामक और भड़काऊ सामग्री। यह वही पुराना फॉर्मूला है जिसका इस्तेमाल आतंकी संगठन अपनी नई भर्ती तैयार करने के लिए करते हैं। लेकिन इस बार यह फॉर्मूला कामयाब नहीं हुआ। एजेंसियों ने समय रहते लोकेशन, डिजिटल फुटप्रिंट और मैसेजिंग पैटर्न पकड़ लिया और सभी हैंडल ब्लॉक कर दिए।
दिल्ली विस्फोट के मामले ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंताएं बढ़ा दी थीं। पता चला कि जैश-ए-मोहम्मद ने डॉक्टरों और दुबई-रिटर्न पेशेवरों जैसे सफेदपोश लोगों की मदद से एक हाई-टेक भर्ती नेटवर्क बनाया था। यही वजह थी कि पकड़े जाने के बाद आतंकी आकाओं ने सोशल मीडिया पर एक्टिविटी तेज कर दी। कुछ दिन पहले दो ऐसे सोशल मीडिया हैंडल पकड़े गए जिन्हें दो नाबालिग चला रहे थे। दोनों को पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के एक प्रोपेगेंडा एक्सपर्ट अहमद सालार उर्फ साकिब का मार्गदर्शन मिल रहा था।
जांच में एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया है-जैश-ए-मोहम्मद अपनी महिला विंग जमात-उल-मोमिनात के लिए सक्रिय रूप से भर्ती कर रहा है। दिल्ली विस्फोट मामले में लखनऊ की शाहीन सईद की गिरफ्तारी इस बात का संकेत है कि महिलाओं को भी अब कट्टरपंथी नेटवर्क का हिस्सा बनाया जा रहा है। महिला ब्रिगेड को लीड कर रही हैं- सादिया अज़हर (जैश प्रमुख मसूद अज़हर की बहन) उनके साथ समायरा, दोनों मिलकर ऑनलाइन ट्रेनिंग और ब्रेनवॉशिंग सत्र चला रही हैं।
सुरक्षा एजेंसियों ने जिस तेजी और सटीकता से इस साजिश को पकड़ा है, वह बताता है कि देश ऑनलाइन कट्टरपंथ के खतरे से निपटने के लिए तैयार है। लेकिन सवाल यह है-क्या आतंकी मॉड्यूल अब सोशल मीडिया को अपना नया युद्धक्षेत्र बना चुके हैं? क्या कमजोर युवाओं को बचाने के लिए और कड़े साइबर उपाय जरूरी हैं? फिलहाल तो एजेंसियों की सक्रियता ने एक बड़ी डिजिटल जिहाद योजना को समय रहते रोक दिया है।
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