
What is Qisas Law: केरल की 38 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया (Nimisha Priya) को यमन में बिज़नेस पार्टनर तालाल अब्दो मेहदी की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई है। यमन में इस्लामी कानून 'क़िसास (Qisas)', यानी 'जान के बदले जान' की मांग पर अड़ा पीड़ित परिवार किसी भी सुलह, समझौते या 'ब्लड मनी (Blood Money)' के प्रस्ताव को खारिज कर चुका है।
पीड़ित के भाई अब्देलफत्ताह मेहदी ने BBC से बात करते हुए कहा कि हमें बस 'क़िसास' चाहिए, कुछ और नहीं। उन्होंने भारतीय मीडिया पर यह आरोप भी लगाया कि इस केस को सिर्फ पैसों के चश्मे से देखा जा रहा है जबकि उनका परिवार 'इंसाफ़' चाहता है।
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'क़िसास' इस्लामी जुडिशियल सिस्टम का वो सिद्धांत है जो कुरान की आयत (Chapter 2, Verse 178) से लिया गया है कि जान के बदले जान, गुलाम के बदले गुलाम और औरत के बदले औरत। हालांकि, कुरान में यह भी कहा गया है कि अगर माफ़ किया जाए तो 'दिया' यानी ब्लड मनी के रूप में आर्थिक मुआवज़ा दिया जा सकता है। यमन में इस कानून के तहत मौत की सजा आम है, खासकर हौथी विद्रोहियों के कब्ज़े वाले इलाकों में। लेकिन इस्लामी दुनिया में अब 'क़िसास' का प्रचलन सीमित होता जा रहा है।
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निमिषा की फांसी 17 जुलाई को तय थी लेकिन मध्यस्थता प्रयासों के चलते इसे फिलहाल टाल दिया गया है। मध्यस्थता करते हुए यमन में रहने वाले भारतीय नागरिक सैमुअल जेरोम लगातार परिवार को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। जेरोम ने कहा कि परिवार 'ब्लड मनी' की बातों से नाराज़ है लेकिन वे रिश्ते सुधारने की कोशिश करेंगे।
निमिषा प्रिया 2011 में केरल के पलक्कड़ से यमन गई थीं। कुछ सालों तक नर्स के तौर पर काम करने के बाद उन्होंने यमन में अपना क्लिनिक खोला। वहां की कानूनी बाध्यता के चलते उन्हें एक स्थानीय नागरिक (Talal Mehdi) को बिजनेस पार्टनर बनाना पड़ा। रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि दोनों की शादी भी हुई थी लेकिन बाद में उनका रिश्ता बिगड़ गया। निमिषा ने आरोप लगाया कि मेहदी ने उनका पासपोर्ट छीन लिया और उन्हें प्रताड़ित किया।
2017 में उन्होंने मेहदी को बेहोश कर पासपोर्ट लेने की कोशिश की लेकिन उसकी मौत हो गई। इसके बाद उन्होंने शव को टुकड़ों में काटकर पानी की टंकी में छिपाने की कोशिश की। भागने की कोशिश में पकड़ी गईं और 2018 में हत्या का दोषी ठहराया गया। 2020 में उन्हें मौत की सजा मिली।
भारत सरकार ने इस मामले में अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी के ज़रिए बताया कि अब ज़्यादा कुछ नहीं किया जा सकता। 'Save Nimisha Priya International Council' की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट को बताया गया कि अब सिर्फ मेहदी के परिवार की सहमति से ही मौत की सजा को रोका जा सकता है।
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