पाकिस्तान की अदालत ने वर्जिनिटी टेस्ट को दिया असंवैधानिक करार, जानिए क्या होता है टू-फिंगर टेस्ट ?

पाकिस्तान की एक कोर्ट ने रेप पीड़िता के वर्जिनिटी टेस्ट को अवैध और असंवैधानिक करार देते हुए रोक लगा दी है। लाहौर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस आयशा मलिक ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह टेस्ट अपमानजनक है और इनसे कोई फोरेंसिक मदद नहीं मिलती। इसी के साथ अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हायमन चेक करने और टू-फिंगर टेस्ट खत्म कर दिया जाएगा। 

इस्लामाबाद. पाकिस्तान की एक कोर्ट ने रेप पीड़िता के वर्जिनिटी टेस्ट को अवैध और असंवैधानिक करार देते हुए रोक लगा दी है। लाहौर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस आयशा मलिक ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह टेस्ट अपमानजनक है और इनसे कोई फोरेंसिक मदद नहीं मिलती। इसी के साथ अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हायमन चेक करने और टू-फिंगर टेस्ट खत्म कर दिया जाएगा। 

पाकिस्तान में लंबे वक्त से मानवाधिकार कार्यकर्ता इन टेस्टों को खत्म करने की मांग कर रहे थे। इसी से संबंधित एक याचिका पर हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। यह याचिका पिछले साल मार्च में दाखिल की गई थी। पाकिस्तान के तमाम मानवाधिकार संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है। 

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क्या है टू फिंगर टेस्ट?
टू-फिंगर टेस्ट महिलाओं के प्राइवेट पार्ट के साइज और हायमन जानने के लिए किया जाता है, ताकि ये पता चल सके कि महिलाओं के पहले से शारीरिक संबंध हैं, या नहीं। इसके आधार पर डॉक्टर रेप पीड़िता की सेक्शुअल हिस्ट्री का पता लगाता है। अगर महिला अविवाहित है और पता चलता है कि उसने शारीरिक संबंध बनाए हैं, तो रेप पीड़ित होने पर उसके बयान को भी नकार दिया जाता है। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ही इस टेस्ट को खारिज कर दिया है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसे WHO मानवाधिकारों का उल्लंघन करार देता है। 

इस टेस्ट के खिलाफ दायर याचिका पर चीफ जस्टिस आयशा मलिक ने कहा, यह अपमानजनक प्रक्रिया है। यह पीड़िता पर शक करने का काम करती है। उन्होंने कहा, वर्जिनिटी टेस्ट की कोई वैज्ञानिक या मेडिकल जरूरत नहीं होती है लेकिन यौन हिंसा के मामलों में मेडिकल प्रोटोकॉल के नाम पर इसे किया जाता रहा है। 

कई देशों में पहले से बैन है ये टेस्ट
बांग्लादेश समेत तमाम देशों में इस टेस्ट को पहले ही बैन कर दिया गया है। हालांकि, पाकिस्तान में अभी भी यह जारी है। WHO के मुताबिक,  यह टेस्ट अनैतिक है। रेप के केस में हाइमन की जांच का ही औचित्य नहीं होना चाहिए। यह टेस्ट महिलाओं को लेकर रुढ़िवादी रवैया बरकरार रखने का भी प्रतीक है। 

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