दुनिया को आईस बकेट चैलेंज देने वाले पीट का निधन, 27 साल की उम्र में हुई इस गंभीर बीमारी ने ली जान

Published : Dec 10, 2019, 05:57 PM IST
दुनिया को आईस बकेट चैलेंज देने वाले पीट का निधन, 27 साल की उम्र में हुई इस गंभीर बीमारी ने ली जान

सार

आइस बकेट चैलेंज को लोकप्रिय बनाने वाले पीट फ्रेट्स का 34 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। जानकारी के मुताबिक फ्रेट्स खुद न्यूरोलॉजिकल डिजीज- एएलएस (एम्योट्रोफिक लेटरल स्लेरोसिस) से जूझ रहे थे। 

वॉशिंगटन. दुनियाभर में आइस बकेट चैलेंज को लोकप्रिय बनाने वाले पीट फ्रेट्स का 34 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। बताया जा रहा कि फ्रेट्स खुद न्यूरोलॉजिकल डिजीज- एएलएस (एम्योट्रोफिक लेटरल स्लेरोसिस) से जूझ रहे थे। इसे बीमारी को लू गेहरिग डिजीज के नाम से भी जाना जाता है। जानकारी के मुताबिक 27 साल की उम्र में ही वे इस बीमारी से ग्रसित हो गए। उन्हें इस बीमारी का पता 2012 में पता चला था। बेसबॉल खिलाड़ी रहे फ्रेट्स ने इसके बाद 2014 में उन्होंने आइस बकेट चैलेंज शुरू किया। 

बर्फीले पानी की बाल्टी उड़ेलना था चैलेंज 

इसके तहत लोगों को अपने ऊपर बर्फीले पानी की बाल्टी उड़ेलनी होती थी और इसका वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करना होता था। इस चैलेंज का लक्ष्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए चैरिटी इकट्ठा करना था। फ्रेट्स से प्रेरणा लेते हुए इस चैलेंज को दुनियाभर के लोकप्रिय लोगों ने लिया। इसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश से लेकर माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स और हॉलीवुड स्टार टॉम क्रूज तक शामिल थे। फ्रेट्स के चैलेंज को बिल गेट्स और जॉर्ज बुश ने भी लिया था।

हिरो की तरह लड़े बीमारी से 

फ्रेट्स के परिवार ने बताया कि 7 साल तक एएलएस से जूझने के बाद सोमवार को पीट का निधन हो गया। उनकी मौत परिवार के बीच शांति से हुई। वे हीरो की तरह लंबे समय तक अपनी बीमारी से लड़े। पीट ने कभी अपनी बीमारी की शिकायत नहीं की, बल्कि उन्होंने इसे दूसरे पीड़ितों और उनके परिवारों को उम्मीद और हिम्मत देने के मौके के तौर पर देखा। 

चैलेंज से जुटाए थे 1418 करोड़ रुपए

एएलएस एसोसिएशन के मुताबिक, 2014 में आइस बकेट चैलेंज में दुनियाभर के करीब 1.7 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया था। इसके जरिए दुनियाभर से 20 करोड़ डॉलर यानी 1418 करोड़ रुपए जुटाए गए थे। इन पैसों का इस्तेमाल न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज पर रिसर्च के लिए किया जा रहा है। इन बीमारियों में आमतौर पर पीड़ितों की मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं, जिससे उनके मूवमेंट्स पर असर पड़ता है। एएलएस का अब तक कोई इलाज नहीं ढूंढा जा सका है।

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