
काठमांडू, नेपाल. किसी भी तिकड़म से नेपाल में दुबारा अपनी सरकार बनाने की तैयारी में लगे कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को जोर का झटका लगा है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) के विद्रोही गुट ने रविवार शाम पार्टी से उनकी मेंबरशिप खत्म कर दी। हालांकि यह कुछ दिन पहले ही तय हो गया था कि ओली का पार्टी में कोई वजूद नहीं बचा। क्योंकि उनके समर्थक गिनती के बचे थे। बता दें कि ओली की सिफारिश पर 20 दिसंबर, 2020 को नेपाल की राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी ने निचले सदन को भंग कर दिया था। यहां इसी साल मार्च से अप्रैल के बीच चुनाव हो सकते हैं।
पार्टी ने मांगी थी सफाई, ओली नहीं पहुंचे
विरोधी गुट के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने रविवार शाम इसकी पुष्टि की। ‘हिमालयीन टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार ओली की सदस्यता खत्म करने का फैसला पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड और माधव कुमार नेपाल की कमेटी ने किया। रविवार को पार्टी की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में इस फैसले पर मुहर लगा दी गई। ओली की कार्यप्रणाली से पार्टी नाखुश थी। पार्टी ने उनसे सफाई मांगी थी, लेकिन वे कमेटी के सामने पेश नहीं हुए। ओली की मेंबरशिप खत्म करने की सूचना एक लेटर के जरिये बालूवाटर (प्रधानमंत्री निवास) भेज दी गई है। बात दें कि कुछ दिन पहले ओली को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाया गया था।
ओली का देशभर में विरोध...
ओली का चीन के प्रति झुकाव नेपालवासियों को रास नहीं आया है। मार्च से ही उनके खिलाफ नेपाल में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। नेपाल के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों ने ओली पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। इन्हीं आरोपों पर जवाब देने से बचने ओली ने संसद भंग कर दी थी। इस समय इसी विषय पर नेपाल का सुप्रीम कोर्ट 13 याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। ओली पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के अलावा बेरोजगारी और कोरोना जैसे मुद्दे पर विफल होने के भी आरोप हैं।
भारत से विवाद...
31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विभाजन लागू होने के बाद नवंबर में भारत ने अपना भू-राजनीतिक नक्शा जारी किया था। नेपाल ने इस पर आपत्ति जताई थी। ओली ने दावा किया था कि सुगौली समझौते के मुताबिक महाकाली नदी के पूर्व पर स्थित ये तीनों क्षेत्र नेपाल के हैं। ओली ने पिछले दिनों नेशनल असेंबली की मीटिंग में कहा था कि वे कूटनीति के जरिये ये तीनों इलाके भारत से वापस ले लेंगे। ओली ने यह भी कहा था कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद से भारतीय सेना नेपाल के जिन इलाकों में तैनात है, नेपाल के शासकों ने कभी उन क्षेत्रों को भारत से लेने की कोशिश नहीं की।
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