
Punjabi families in America: 1974 में डॉ. सुरिंदर गुप्ता अपनी पत्नी शशि और नवजात बेटे शमिंदर के साथ अमेरिका के न्यू ऑरलियन्स गए थे। नई जगह पर वह अपने जीवन में तालमेल बिठा रहे थे तभी एक सर्द रात को उनके जीवन ने अहम मोड़ लिया। एक फोन कॉल ने उन्हें जीवन भर का दोस्त दिला दिया।
एक रात बच्चे शमिंदर को तेज बुखार हुआ। परिवार दवा की दुकान की ओर दौड़ा। जब वे लौटे तो उनकी कार टो करके ले जाई जा चुकी थी। टैक्सी के लिए पैसे नहीं थे। अनजान शहर में मदद के लिए कोई दोस्त नहीं था। ऐसे में सुरिंदर गुप्ता ने फोन बुक खोली और जाने-पहचाने पंजाबी सरनेम पर फोन करने लगे।
सबसे पहले जवाब देने वाले सुखदेव वालिया थे। वह जानते थे कि सुरिंदर अजनबी हैं, लेकिन उन्होंने उनकी मजबूरी समझी। देर रात होने के बावजूद, वालिया गुप्ता परिवार की मदद के लिए गाड़ी चलाकर गए। उन्हें घर पहुंचाया और बाद में उनकी कार वापस ली।
संयोगवश हुई यह मुलाकात आगे चलकर गहरी दोस्ती में बदल गई। दोनों परिवार साथ में समय बिताने लगे। भारतीय फिल्में देखना, साथ खाना खाना और ताश खेलना। एक साल के अंदर ही वे गहरे दोस्त बन गए। दोनों साथ-साथ बच्चों की परवरिश कर रहे थे और घर से दूर एक मजबूत सहारा बन गए।
सालों बाद नियति ने इस रिश्ते को और गहरा कर दिया। गुप्ता की बेटी और वालिया के भतीजे (जो एक-दूसरे के साथ पले-बढ़े थे) प्यार में पड़ गए और शादी कर ली। आज उनके बच्चे दोनों परिवारों को न सिर्फ दोस्ती बल्कि खून के रिश्ते से भी जोड़ते हैं। पचास साल बाद आज भी दोनों परिवार एक ही हैं। गुप्ता ने कहा, "यह सब एक दवा की दुकान पर एक फोन बुक से शुरू हुआ था। एक अजनबी की दयालुता से शुरू हुआ यह रिश्ता एक परिवार बन गया।"
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