
छोटा सा देश क़तर, जिसकी फ़ौज ज़्यादा ताक़तवर नहीं है, उसने ईरान जैसे देश को अपनी बात मानने और युद्ध रोकने पर मजबूर कर दिया। ये देखकर सब हैरान हैं। सिर्फ़ 66 हज़ार सैनिकों वाले इस मुस्लिम देश की बात ईरान ने फ़ौरन मान ली और युद्ध ख़त्म कर दिया। कैसे? ये सवाल आपके मन में भी होगा। चलिए, क़तर की असली ताक़त, उसकी आर्थिक स्थिति, के बारे में जानते हैं।
ग्लोबल फ़ायरपावर इंडेक्स के मुताबिक़, 145 देशों में क़तर 72वें नंबर पर है। इसका पावर इंडेक्स स्कोर 1.4307 है। क़तर की फ़ौज में सिर्फ़ 66,550 सक्रिय सैनिक हैं, 15,000 रिज़र्व सैनिक हैं और 4 लाख लोग सेना में भर्ती होने के योग्य हैं।
क़तर के हथियार भी मामूली हैं। इसके पास 138 टैंक, 922 बख़्तरबंद गाड़ियां, 16 रॉकेट मिसाइल, 205 विमान (लड़ाकू विमान नहीं), 87 हेलीकॉप्टर और 6 यूसीएवी ड्रोन हैं। नौसेना में कोई एयरक्राफ़्ट कैरियर या युद्धपोत नहीं है। क़तर के पास परमाणु हथियार भी नहीं हैं, और पाकिस्तान को छोड़कर किसी भी इस्लामिक देश के पास नहीं हैं, लेकिन क़तर की असली ताक़त उसकी आर्थिक क्षमता और कूटनीति है।
50 खरब रुपये से ज़्यादा के रक्षा बजट के साथ, यह अपनी जीडीपी का सिर्फ़ 3.6% ही रक्षा पर ख़र्च करता है। क़तर के आर्थिक संसाधन और दुनिया भर में राजनयिक संबंध उसे ईरान जैसे देशों पर दबाव बनाने की ताक़त देते हैं। इसकी भौगोलिक स्थिति भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इन्हीं वजहों से, कमज़ोर फ़ौज होने के बावजूद, क़तर के दबाव में ईरान को युद्ध रोकना पड़ा।
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