जानिए कौन हैं Ayesha Malik, जो पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज बनेंगी, न्यायिक आयोग ने दी मंजूरी

पाकिस्तान इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि जब एक महिला पाक के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनेगी। यह कारनाम करने वाली महिला का नाम है आयशा मलिक. दरअसस, पाक कि उच्चस्तरीय न्यायिक समिति ने आयशा मलिक (Justice Ayesha Malik) की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति को मंजूरी दे दी। 

लाहौर : पाकिस्तान (pakistan) एक ऐसा देश है, जहां पर महिलाओं को हमेशा पुरुषों से कमतर आंका जाता है। यहां पर लड़कियों की शिक्षा की पैरवी करने वालों को गोली मार दी जाती है। पाकिस्तान के पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के जीने से लेकर मरने तक उनपर किसी पुरुष का अख्तियार होता है. उस देश में एक महिला का सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस (woman Supreme Court judge ) बन जाना अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं है।

उच्चस्तरीय न्यायिक समिति ने दी मंजूरी
कड़ी मेहनत, लगन और ईमानदारी से इस चमत्कार को अंजाम देने वाली महिला का नाम है आयशा ए मलिक, (Ayesha Malik ) वह पाक सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जस्टिस बनने जा रही हैं। पाकिस्तान के न्यायिक आयोग ने उनके नाम को मंजूरी दे दी है. इसके बाद यदि संसदीय समिति से मंजूरी मिल जाती है तो वह पाकिस्तान में एक ऐसा दर्जा हासिल कर लेंगी, जो वहां की महिलाओं के लिए किसी सपने से कम नहीं।

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2012 में आयशा मलिक लाहौर हाईकोर्ट की जज बनीं 
आयशा मलिक के करियर की बात करें तो उन्होंने अपना करियर कराची में फखरूद्दीन जी इब्राहिम एंड कंपनी से शुरू किया था. यहां पर उन्होंने 1997 से 2001 तक चार साल बिताए। इसके बाद उन्होंने अगले 10 बरसों में उन्होंने खूब नाम कमाया और कई मशहूर कानूनी फर्मों के साथ जुड़ी। 2012 में वह लाहौर हाईकोर्ट (Lahore High Court) की जज बनीं और  कानून की दुनिया में खूब नाम कमाया और पाकिस्तान का एक बड़ा नाम बन गई।

हॉवर्ड स्कूल ऑफ लॉ से एलएलएम की हैं आयशा मलिक
आशा मलिक का जन्म तीन जून 1966 को हुआ था। उन्होंने कराची ग्रामर स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने कराची के ही गवर्नमेंट कालेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से स्नातक की पढ़ाई की। उनका कानूनी शिक्षा की तरफ रुझान हुआ और लाहौर के कॉलेज ऑफ लॉ से डिग्री लेने के बाद उन्होंने अमेरिका में मेसाच्यूसेट्स के हॉवर्ड स्कूल ऑफ लॉ से एलएलएम (विधि परास्नातक) की पढ़ाई की। उनकी उल्लेखनीय योग्यता का सम्मान करते हुए उन्हें 1998-1999 में ‘लंदन एच गैमोन फेलो’ चुना गया।

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