क्या है चीन-ताइवान के झगड़े की वजह, जानें क्यों अमेरिका और नैंसी पेलोसी को लेकर बौखलाया ड्रैगन

चीन-ताइवन में तनाव के बीच अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान दौरे पर पहुंची हैं। अमेरिका के इस कदम से चीन बुरी तरह बौखला गया है। यहां तक कि चीन की आर्मी (PLA) ने ताइवान को चारों तरफ से घेर लिया है और अपने फाइटर जेट व युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। क्या है चीन-ताइवान का विवाद और क्यों अमेरिका से नाराज है चीन? जानते हैं। 

China-Taiwan Dispute: चीन की धमकी के बाद भी अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान दौरे पर पहुंची हैं। पेलोसी के इस कदम से चीन बौखला गया है। यहां तक कि उसने सीधे-सीधे मिलिट्री एक्शन की धमकी दी है। चीन की आर्मी (PLA) ने ताइवान को चारों तरफ से घेर लिया है और अपने फाइटर जेट व युद्धपोत तैनात कर दिए हैं। कहा तो ये भी जा रहा है कि चीन अब पेलोसी को ताइवान से बाहर जाने से भी रोक सकता है। पेलोसी के ताइवान पहुंचने से अमेरिका और चीन के रिश्तों में तनाव और बढ़ सकता है। आखिर क्या है चीन-ताइवान के झगड़े की वजह और क्यों नैंसी पेलोसी के दौरे से भड़का है ड्रैगन? आइए जानते हैं। 

क्या है चीन-ताइवान के झगड़े की वजह?
ताइवान, चीन के पूर्व में समंदर के बीचोंबीच स्थित एक छोटा-सा द्वीप है। चीन से ताइवान की दूरी करीब 160 किलोमीटर है। करीब 2.3 करोड़ की आबादी वाले ताइवान को चीन अपना एक प्रांत मानता है। वहीं ताइवान अपनी पहचान एक आजाद देश के रूप में बताता है। दोनों में तनातनी आज से नहीं बल्कि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान से ही चल रहा है। 

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इसलिए ताइवान पर कब्जा नहीं कर पाया चीन : 
दरअसल, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1949 में चीनी नेता माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई। इसके बाद कुओमितांग के लोग अपनी मुख्य भूमि छोड़कर ताइवान में बस गए। चूंकि उस वक्त कम्युनिस्टों की नौसेना बेहद कमजोर थी, ऐसे में माओत्से तुंग की सेना समुद्र पार कर ताइवान को अपने कंट्रोल में नहीं ले सकी। 

चीन का दावा-ताइवान हमारा हिस्सा : 
हालांकि, चीन दावा करता है कि 1992 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और ताइवान की कुओमितांग पार्टी के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के मुताबिक, दोनों पक्ष इस बात को मानने के लिए राजी हो गए थे कि ताइवान चीन का ही एक हिस्सा है। लेकिन कुओमितांग की मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने इस समझौते को कभी नहीं माना। वहीं चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कहना है कि वो हर हाल में ताइवान को चीन में मिलाकर रहेंगे, जबकि ताइवान चीन में नहीं मिलना चाहता और वो अलग देश के रूप में ही रहना चाहता है। 

इसलिए बढ़ रही चीन-अमेरिका में खटास : 
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने साफ कह दिया है कि अगर चीन किसी भी सूरत में ताइवान पर हमला करता है तो वो उसकी रक्षा करेंगे। इसके अलावा अमेरिका ताइवान को हथियार भी बेचता है। ऐसे में ताइवान के साथ अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों की वजह से चीन पहले से ही बौखलाया हुआ है। उसने दोनों देशों के बीच किसी भी तरह की दखलंदाजी न करने की धमकी भी दी है। 

नैंसी पेलोसी से इसलिए बौखलाया चीन : 
नैंसी पेलोसी हमेशा से ही चीन की आलोचना करती रही हैं। 1991 में बीजिंग दौरे के दौरान पेलोसी यहां के थियानमेन चौक पहुंची थीं। इस दौरान उन्होंने एक बैनर लेकर चीन में लोकतंत्र की वकालत की थी। बता दें कि थियानमेन स्क्वॉयर वही जगह है, जहां 1989 में चीनी स्टूडेंट देश में लोकतंत्र की मांग करते हुए प्रोटेस्ट कर रहे थे। इसी बीच चीनी सेना ने उन पर टैंक चढ़ाते हुए गोलियां बरसाई थीं। इस हमले में हजारों लोगों की मौत हुई थी। 

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