सीमा विवाद : रूस के तेवर ने बढ़ाई शीतयुद्ध की आशंका, यूक्रेन के लिए एकजुट हुआ NATO, जानिए पूरा मामला

यूक्रेन को लेकर रूस के खिलाफ नाटो देशों के सदस्य एकजुट होकर सामने आए। स्वीडन की सुरक्षा व विकास संस्थान की अध्यक्ष एना वीजलैंडर ने कहना है कि रूस को रोकना नाटो के डीएनए में है। 
 

Asianet News Hindi | Published : Jan 15, 2022 6:15 AM IST / Updated: Jan 15 2022, 12:12 PM IST

नई दिल्ली :  रूस के 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद नाटो के अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगे थे। इतना ही नहीं पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो का मजाक उड़ाया था।  तो फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रां ने कहा कि गठबंधन की ब्रेन डेथ हो चुकी। रूस यूक्रेन सीमा विवाद को लेकर आक्रामक रुख अख्तियार कर रहा है. ऐशी आशंका जताई जा रही है आने वाले तीस दिनों में रूस यूक्रेन पर हमला कर सकता है. हालांकि रूस के इस तेवर से नाटो एकजुट हो गया है। विशेषज्ञों की मानें तो इससे दुनिया एक नए शीत युद्ध की आहट महसूस कर रही है।

रूस कर सकता है यूक्रेन पर हमला
यूक्रेन के खिलाफ रूसी साइबर अभियानों की निगरानी करने वाली अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का मानना ​​है कि रूस की गतिविधि से लग रहा है कि वह अगले 30 दिनों के अंदर यूक्रेन पर जमीनी हमला कर सकता है। 

रूस को रोकना नाटो के डीएनए में 
यूक्रेन को लेकर रूस के खिलाफ नाटो देशों के सदस्य एकजुट होकर सामने आए। स्वीडन की सुरक्षा व विकास संस्थान की अध्यक्ष एना वीजलैंडर ने कहना है कि रूस को रोकना नाटो के डीएनए में है। ऐसा इसलिए क्योंकि रूस ही ऐसा देश है, जो यूरोपीय देशों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर सकता है। रूस नाटो के लोकतांत्रिक सामंजस्य को कमजोर करने के कोशिश कर रहा है। रूस हमारे चुनावों,  सोशल मीडिया, संसदों व नागरिकों को निशाना बना रहा है। ऐसे में जरूरी है कि नाटो के सदस्य पूरी ताकत के साथ रूस के खिलाफ खड़े हो जाएं।

रूस की अमेरिका को चेतावनी
रूस के राष्ट्रपति पुतिन लगातार नाटो को रोकने के लिए अमेरिका को धमकी देते रहे हैं. रूस लगातार कहता है कि अमेरिका उसे बदनाम करने की कोशिश कर रहा है. यूएस नाटो का विस्तार करना चाहता है. रूस आए दिन कहता रहता है कि नाटो को रूस के साथ सीमा साझा करने वाले देशों से अपने सैनिकों को हटा लेना चाहिए.

नाटो क्यों हुआ सक्रिय
अमेरिका के सीनियर इंटेलिजेंस अफसर एंड्रिया केंडल-टेलर का ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जा करने के बाद नाटो के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे थे।  उस समय ऐसा लग रहा था कि नाटो में बहुत सारी खामियां हैं, लेकिन यूक्रेन पर रूस के राष्ट्रपति आक्रामक रवैये से 1922 से पहले वाली स्थिति नाटो को लाकर खड़ा कर दिया है. इस सप्ताह नाटो के 30 सदस्य देशों ने एक साथ आकर इस संगठन में एक  जान फूंक दी है।

अमेरिका यूक्रेन के स्पेशल सैनिकों को दे रहा प्रशिक्षण
इसी बीच एक रिपोर्ट सामने आई है।  जिसमें कहा गया है कि अमेरिका के दक्षिण में यह कार्यक्रम 2015 से चल रहा है। इसे ओबामा प्रशासन ने हरी झंडी दी थी और ट्रंप प्रशासन में इसे और विस्तार मिला। अब बाइडेन प्रशासन में भी इसे आगे बढ़ाया जा रहा है। 

नाटो क्या है
नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन(नाटो) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों द्वारा अमेरिका के वॉशिंगटन में किया गया था। यह एक अंतर- सरकारी सैन्य संगठन है। इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में अवस्थित है। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 30 है। इसकी स्थापना का मुख्य   उद्देश्य पश्चिम यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना था। इसमें फ्रांस।  बेल्जियम।  लक्जमर्ग,  ब्रिटेन,  नीदरलैंड,  कनाडा,  डेनमार्क,  आइसलैण्ड, इटली, नार्वे,  पुर्तगाल,  अमेरिका,  पूर्व यूनान, टर्की,  पश्चिम जर्मनी और स्पेन शामिल हैं।

नाटो के टक्कर में रूस ने किया वारसा पैक्ट
नाटो के खिलाफ में सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों के गठबंधन ने सन् 1955 में वारसा संधि की। इसमें सोवियत संघ,  पोलैंड,  पूर्वी जर्मनी,  चैकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया शामिल हुए. इस संधि का मुख्य उद्देश नाटो में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना था. 1992 में सोवियत यूनियन के टूट गया. इसके बाद सोवित यूनियन का हिस्सा रहे देश कजाकिस्तान,  किर्गिस्तान,  आर्मेनिया,  बेलारूस,  ताजिकिस्तान और रूस ने मिलकर कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (CSTO) की स्थापना की थी।

भारत की क्या है स्थिति
भारत ने 1961 में  युगोस्लाविया,  इंडोनेशिया, मिस्र,  और घाना के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत की थी। इस आंदोलन के सदस्य देश न तो अमेरिका के साथ रहे और न ही रूसी खेमे में शामिल हुए। इससे देखा जाए तो भारत ने तटस्था की स्थिति अपनाई हुई है. यूक्रेने मुद्दे को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रूस अगर आक्रामक रैवेय को छोड़ता नहीं तो दुनिया एक दूसरा शीतयुद्ध देख सकती है.

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