बांग्लादेश भीड़ के हवाले, क्यों शेख हसीना की सजा-ए-मौत ढाका के लिए एक खतरनाक बदलाव

Published : Nov 18, 2025, 08:08 PM IST
Bangladesh analysis

सार

बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी इस बात पर चिंता जताई है। इस पूरे मामले पर बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास का क्या कहना है, जानते हैं। 

नई दिल्ली। बांग्लादेश में उस वक्त राजनीतिक उथल-पुथल मच गई, जब ढाका की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई। शेख हसीना ने इस फैसले को पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा कि उन्हें अपना पक्ष रखने तक का मौका नहीं दिया गया। दुनियाभर के तमाम लोगों को भी यही लगता है कि हसीना के साथ गलत हुआ है। इस पूरे मामले पर एशियानेट न्यूज नेटवर्क की हीना शर्मा ने बांग्लादेश में भारत की पूर्व उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास से विशेष बातचीत की। उन्होंने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को आकार देने वाली चरमपंथी ताकतों और इस फैसले के प्रभावों का विश्लेषण किया।

शेख हसीना की सजा पर फैसला क्यों राजनीति से प्रेरित?

जब रीवा गांगुली से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि इस केस में कानूनी मजबूती की कमी थी तो उन्होंने कहा, "जिस तेजी से फैसला आया, शेख हसीना को अपनी पसंद का वकील न मिलना, उनकी गैर-मौजूदगी में फैसला सुनाना, ये कुछ ऐसे कारण हैं जो इसे राजनीति से प्रेरित फैसला कहने के लिए काफी हैं। इस फैसले के तुरंत बाद ढाका में हुई हिंसा, ऐतिहासिक बंगबंधु स्मारक संग्रहालय में तोड़फोड़, शेख मुजीबुर्रहमान के घर में बने संग्रहालय को तहस-नहस करने की कोशिशें, इस बात की ओर इशारा करती हैं कि बांग्लादेश में काफी राजनीति चल रही है।"

जमात की सत्ता में वापसी: चरमपंथी चला रहे सरकार

मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर लंबे समय से भारत विरोधी तत्वों को पनाह देने और चरमपंथी गुटों को बचाने का आरोप लगता रहा है। रीवा दास के मुताबिक, शेख हसीना की सरकार में दबा दिए गए कट्टरपंथी आतंकी गुटों ने अब फिर बांग्लादेश में अपना प्रभाव जमा लिया है। जमात के लोग और चरमपंथी वर्तमान में सरकार चला रहे हैं। बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति का विरोध करने वाले इस्लामी गुटों की वजह से है। 1971 के युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए शेख हसीना द्वारा गठित ट्रिब्यूनल को अब उन पर मुकदमा चलाने के लिए नया रूप दिया गया है। रीवा दास के मुताबिक, जमात और अन्य कट्टरपंथी संगठनों की बढ़ती ताकत बताती है कि बांग्लादेश का ये फैसला पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है।

क्या बांग्लादेश 1975 दोहरा रहा है?

इस सवाल पर रीवा दास ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि हालात अब भी वैसे ही हैं।" 1975 में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की हत्या से तुलना करते हुए उन्होंने कहा, आज बांग्लादेश पहले से ज्यादा मजबूत, स्थिर और आत्मविश्वासी है। बांग्लादेश ने कई दशकों तक बेहद अच्छी इकोनॉमिक ग्रोथ देखी है। महिलाएं सशक्त हैं, उनकी एक मजबूत बांग्लादेशी पहचान है।" रीवा दास के मुताबिक, सामाजिक-आर्थिक बदलाव के चलते 1975 जैसा पतन असंभव है। आज उस तरह की तबाही मचाना बहुत मुश्किल है। मुझे लगता है कि बांग्लादेश को अब एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया की ओर बढ़ने की जरूरत है।"

अवामी लीग को अब भी अपार समर्थन

रीवा दास ने कहा, अवामी लीग के कार्यकर्ताओं के देश छोड़कर भागने या छिपने के लिए मजबूर होने के बावजूद आप उन्हें नकार नहीं सकते। इस फैसले से हसीना का समर्थन आधार कम नहीं हुआ है। शेख हसीना को अब भी काफी समर्थन प्राप्त है। यह एक जमीनी स्तर की पार्टी है, जिसकी मौजूदगी बांग्लादेश के गांव-गांव तक है।

भीड़ के हवाले हुआ बांग्लादेश

भारत-बांग्लादेश संबंधों पर बात करते हुए, रीवा दास ने वहां अल्पसंख्यकों पर हो रहे लगातार हमलों और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश भीड़ के हवाले जाता हुआ दिख रहा है। लॉ एंड ऑर्डर के हालात बद से बदतर हो चुके हैं। ये चीजें वाकई भारत के लिए चिंता बढ़ाने वाली हैं। हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद से ही भारत-बांग्लादेश के संबंध खराब हो चुके हैं। रीवा गांगुली दास के मुताबिक, बांग्लादेश अपने आधुनिक इतिहास के सबसे अस्थिर बदलावों से गुजर रहा है।

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