दिवालिया होने की कगार पर श्रीलंका, अर्थव्यवस्था को सहारा देने गोल्ड का रिजर्व स्टॉक बेचने की मजबूरी

Published : Jan 19, 2022, 02:50 PM IST
दिवालिया होने की कगार पर श्रीलंका, अर्थव्यवस्था को सहारा देने गोल्ड का रिजर्व स्टॉक बेचने की मजबूरी

सार

sri lanka economic crisis : श्रीलंकर दिवालिया होने की कगार पर है। हाल ही में यहां आर्थिक इमरजेंसी घोषित हो चुकी है। सेना जरूरी खाद्य सामग्रियों को नियंत्रित कर रही है। इस बीच पड़ोसी देश ने खुद को दिवालिया होने से बचाने के लिए सोना बेचना शुरू किया है। 

बिजनेस डेस्क। लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था से जूझ रहा श्रीलंका देश को संभालने के लिए हर संभव कोशिश में लगा है। यहां 5 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। खाद्य सामग्री की कीमतें आसमान छू रही हैं। देश दिवालिया होने की कगार पर है। हाल ही में यहां आर्थिक इमरजेंसी घोषित हो चुकी है। सेना जरूरी खाद्य सामग्रियों को नियंत्रित कर रही है। इस बीच पड़ोसी देश ने खुद को दिवालिया होने से बचाने के लिए सोना बेचना शुरू किया है। 

रिजर्व बैंक ने की पुष्टि, 3.6 टन सोना बेचा गया 
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक ने इस बात की पुष्टि की है। उसने कहा कि विदेशी मुद्रा के कम होते भंडार को देखते हुए उसने अपने गोल्ड रिजर्व का एक हिस्सा बेच दिया है। इकोनॉमी नेक्ट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अनुमान है कि श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के पास 2021 की शुरुआत में 6.69 टन गोल्ड का रिजर्व स्टॉक था, जिसमें से लगभग 3.6 टन सोना बेचा गया है। अब उसके पास लगभग 3.0 से 3.1 टन सोना ही रह गया है। 

नकदी बढ़ाने के लिए बेचा गया सोना 
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के गवर्नर निवार्ड कैब्राल ने कहा है कि श्रीलंका ने अपने सोने के भंडार के एक हिस्से को लिक्विड फॉरेन एसेट्स (नकदी) को बढ़ाने के लिए बेचा है। उनके मुताबिक- जब विदेशी भंडार कम होता है तो हम सोने की होल्डिंग कम करते हैं। जब विदेशी भंडार बढ़ रहा था तो हमने सोना खरीदा। एक बार जब रिजर्व स्तर 5 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक बढ़ जाएगा तो केंद्रीय बैंक सोने की होल्डिंग बढ़ाने पर विचार करेगा।

श्रीलंका की स्थिति 1991 के भारत जैसी, तब देश ने गिरवी रखा था सोना 
डेली मिरर के मुताबिक श्रीलंका प्रमुख अर्थशास्त्री डॉ. डब्ल्यू. ए विजेवर्धने ने सोना बेचे जाने को लेकर कहा कि उन्होंने श्रीलंका की स्थिति की तुलना 1991 के भारत से की है। 1991 में भारत ने खुद को दिवालिया होने से बचाने के लिए सोना गिरवी रखा था। उन्होंने कहा - सोना एक रिजर्व है, जिसे किसी देश को डिफॉल्ट के कगार पर होने पर अंतिम उपाय के रूप में उपयोग करना होता है। इसलिए जब कोई दूसरा विकल्प उपलब्ध न हो तो सोने की बिक्री संयम से की जानी चाहिए।

कांग्रेस सरकार ने छिपाई थी सोना गिरवी रखने की बात 
गौरतलब है कि भारत सरकार ने 1991 में सोना गिरवी रखा था, लेकिन यह बात देश से छिपाई गई। हालांकि, बाद में मामला बाहर आया और सरकार की छवि खराब हुई। तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने बाद में लोकसभा में स्वीकार किया कि देश के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था। 

भारत ने दो बार गिरवी रखा था सोना
1991 में भारत ने 20 हजार किलो सोना स्विटजरलैंड के यूबीएस बैंक में गिरवी रखा था। उस समय यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री थे और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री। उस दौरान अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भारत की रेटिंग गिरा दी थी। ऐसे मुश्किल समय में अंतिम विकल्प के रूप में सोना गिरवी रखने का फैसला किया गया। 20 हजार किलो सोने के बदले में तब 20 करोड़ डॉलर मिले थे। 

21 जून 1991 को पीवी नरसिम्हा राव की सरकार आई। इस सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को बनाया गया। नई सरकार के पास दिवालिया हो रहे देश को बचाने की चुनौती थी। ऐसे में एक बार फिर सोना गिरवी रखा गया जिसकी खबर देश को नहीं दी गई। तब 47 टन सोना गिरवी रखा गया था, जिसके बदले में 40 करोड़ डॉलर मिले थे। यह खबर बाहर आई तो काफी हंगामा हुआ था।

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