
बीजिंग/नई दिल्ली। डरावनी फिल्में स्कूली छात्रों के लिए कितनी घातक हो सकती हैं, इसका एक उदाहरण हाल ही में चीन में सामने आया। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल में सेल्फ स्टडी सेशन के दौरान डरावनी फिल्म देखने के बाद एक चीनी छात्र मानसिक रूप से टूट गया। इस घटना के बाद उस स्कूल के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। छात्र की मेंटल हेल्थ को देखते हुए अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और स्कूल के इंश्योरेंस प्रोवाइडर को 9,182 युआन (1.13 लाख रुपए) का मुआवजा देने का आदेश दिया।
यह घटना अक्टूबर 2023 में तब हुई, जब स्कूल के एक शिक्षक छुट्टी पर थे और इस दौरान सेल्फ स्टडी सेशन चल रहा था, जिसके दौरान कुछ छात्रों ने फिल्म देखने का सुझाव दिया। क्लास हेड, टीचर और सभी क्लासमेट्स की सहमति के बाद एक डरावनी फिल्म चुनी गई। हालांकि, रिपोर्ट में उस फिल्म का नाम नहीं बताया गया है। उसी दिन, जब स्टूडेंट्स अपनी मां के साथ ऑनलाइन चैट कर रहे थे, तो उन्हें बोलने में दिक्कत और मानसिक उलझन हुई। लेकिन उनमें से एक स्टूडेंट की मेंटल हालत बेहद खराब हो गई।
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मानसिक बीमारी का कोई पूर्व इतिहास न होने के कारण, छात्र को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे एक्यूट एंड ट्रांसिएंट साइकॉटिक डिसऑर्डर से पीड़ित बताया। क्लीवलैंड क्लिनिक के अनुसार, मनोविकृति एक ऐसा विकार है, जिसमें लोग कई बार ऐसी चीजों का अनुभव भी कर सकते हैं जो वास्तविक नहीं हैं।
स्टूडेंट्स के पेरेंट्स ने दावा किया कि स्कूल बच्चों के मेंटल हेल्थ ठीक रखने में पूरी तरह विफल रहा, क्योंकि परिसर में चल रही हॉरर फिल्म देखने के कारण ही उनमें मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुईं। इस बीच, स्कूल ने आरोपों से बचने की कोशिश की और अदालत में कहा कि छात्र की मानसिक स्थिति एक खास शारीरिक संरचना या पहले से मौजूद बीमारी के चलते खराब हुई थी। स्कूल ने बताया कि उसने पीड़ित सहित 5,000 से ज्यादा स्टूडेंट्स के लिए इंश्योरेंस लिया था, जिसकी पर्सनल कवरेज लिमिट 5,00,000 युआन (करीब 61 लाख रुपए) थी।
बता दें कि यह घटना छात्रों को परेशान करने वाली सामग्री के संपर्क में लाने के संभावित जोखिमों को उजागर करती है, खासकर एक संवेदनशील माहौल में। डरावनी फिल्में कुछ व्यक्तियों में चिंता, भय और यहां तक कि पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) को भी जन्म दे सकती हैं। यह घटना चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रही है। एक यूजर ने कहा, "ईमानदारी से कहूं तो उन्हें हॉरर फिल्मों के बजाय कोई क्लासिक फिल्म चुननी चाहिए थी। कैसे टीचर हैं कि डरावनी फिल्में दिखाने की मंजूरी दे दी। आखिर स्कूल की क्या जिम्मेदारी है।
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