ओबीओआर को देखते हुए चीन की उदारता पर सवाल उठाने की वजहें हैं: अमेरिकी राजनयिक

Published : Nov 23, 2019, 11:57 AM IST
ओबीओआर को देखते हुए चीन की उदारता पर सवाल उठाने की वजहें हैं: अमेरिकी राजनयिक

सार

ओबीओआर चीन की सरकार द्वारा अपनायी वैश्विक विकास रणनीति है जिसमें 152 देशों और एशिया, यूरोप, पश्चिम एशिया तथा अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय संगठनों में बुनियादी ढांचा विकास और निवेश करना शामिल है  

वाशिंगटन: अमेरिका की एक शीर्ष राजनयिक ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) पहल को देखने के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की उदारता पर सवाल उठाने की वजहें हैं। राजनयिक ने कहा कि बीजिंग ने कर्ज देने के लिए कभी भी वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त पारदर्शी प्रक्रियाओं का समर्थन नहीं किया।

ओबीओआर में 152 देशों 

ओबीओआर चीन की सरकार द्वारा अपनायी वैश्विक विकास रणनीति है जिसमें 152 देशों और एशिया, यूरोप, पश्चिम एशिया तथा अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय संगठनों में बुनियादी ढांचा विकास और निवेश करना शामिल है। दक्षिण और मध्य एशिया के लिए कार्यवाहक सहायक विदेश मंत्री एलिस वेल्स ने बृहस्पतिवार को विल्सन सेंटर थिंक टैंक के एक कार्यक्रम में कहा कि दुनियाभर में और निश्चित तौर पर दक्षिण तथा मध्य एशिया में चीन अन्य देशों को ओबीओआर समझौतों पर हस्ताक्षर करने पर जोर दे रहा है। इसके लिए वह शांति, सहयोग, खुलेपन, समावेशिता जैसी बातों का हवाला दे रहा है।

 चीन ने दिया पांच हजार अरब डॉलर का कर्ज

उन्होंने कहा, यह सुनने में काफी अच्छा लगता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ओबीओआर की प्रक्रिया को देखने के बाद चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की उदारता पर सवाल करने की वजहें हैं। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए चीन कर्ज के तौर पर अच्छे खासे वित्तपोषण की पेशकश करता है लेकिन वह पेरिस क्लब का सदस्य नहीं है और उसने कर्ज देने के लिए कभी भी वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त पारदर्शी प्रक्रियाओं का समर्थन नहीं किया।

कील इंस्टीट्यूट द्वारा जारी आकलन के अनुसार, चीन दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदाता है लेकिन वह अपने आधिकारिक ऋणदेय पर संपूर्ण आंकड़ों के साथ कभी रिपोर्ट नहीं देता या प्रकाशित नहीं करता, इसलिए रेटिंग एजेंसियां पेरिस क्लब या आईएमएफ इन वित्तीय लेनदेन पर नजर नहीं रख पाती। चीन ने दुनियाभर में पांच हजार अरब डॉलर का कर्ज दे रखा है।

श्रीलंका में भी हम्बनटोटा बंदरगार के संबंध में बीजिंग ने सरकार को एक अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दिया।

वेल्स ने कहा, ‘‘नतीजा यह हुआ कि श्रीलंका कर्ज नहीं चुका पाया और उसने अंतत: राहत पाने के लिए बीजिंग को 99 साल के पट्टे पर बंदरगाह को सौंपना पड़ा।’’

(प्रतिकात्तमक फोटो)

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