US को 3 साल पहले पता था होगा विमान अगवा, CIA ने ISI के बारे में दी बड़ी जानकारी

1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण की घटना से तीन साल पहले ही अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA को इस बारे में जानकारी मिल गई थी। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार को पैसे दे रही थी।

Vivek Kumar | Published : Sep 5, 2024 12:07 PM IST / Updated: Sep 05 2024, 05:47 PM IST

नई दिल्ली। 1999 में आतंकवादियों ने इंडियन एयरलाइंस के विमान को अगवा कर लिया था। इसपर नेटफ्लिक्स की ‘आईसी 814: द कंधार हाईजैक’ (IC 814: The Kandahar Hijack) सीरीज आई है। विमान अगवा करने में पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी CIA का हाथ था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA (Central Intelligence Agency) को तीन साल पहले पता चल गया था कि विमान हाईजैक होने वाला है, लेकिन इसके बाद भी यह घटना हो गई।

अगस्त 1996 के एक गुप्त रिपोर्ट के अनुसार CIA को आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार के सूत्रों से जानकारी मिली थी कि यह समूह “नागरिक विमानों के खिलाफ आतंकवादी कार्रवाई” करने वाला है। अब सार्वजनिक किए गए रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत में नागरिक विमानों पर हमलों में पश्चिमी देशों के लोग हताहत हो सकते हैं। यहां बड़ी संख्या में पश्चिमी पर्यटक आते हैं।"

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1994 में गिरफ्तार किया था अजहर

CIA की रिपोर्ट के अनुसार भारत के अधिकारियों ने 1994 में माटीगुंड गांव के पास मसूद अजहर को सज्जाद खान के साथ गिरफ्तार किया था। सज्जाद हरकत-उल-अंसार का क्षेत्रीय सैन्य कमांडर था। इसके बाद इस आतंकी संगठन ने तेरह लोगों को अगवा किया था। इनमें से 12 पश्चिमी देशों के नागरिक थे।

इनके बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI ने हरकत को दिए जाने वाले पैसे कम कर दिए थे। ISI से इस आतंकी संगठन को हर महीने 30 हजार से 60 हजार डॉलर (25-50 लाख रुपए) मिल रहे थे। पाकिस्तान को डर था कि आतंकी संगठन के साथ संबंध के चलते अमेरिका उसे आतंकवाद को प्रयोजित करने वाले देशों की लिस्ट में डाल देगा।

अजहर की गिरफ्तारी के बाद हरकत-उल-अंसार ने शुरू किया था पश्चिमी देशों के खिलाफ अभियान

अजहर की गिरफ्तारी के बाद हरकत-उल-अंसार ने पश्चिमी देशों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। इसका उद्देश्य पश्चिमी सरकारों पर उसकी रिहाई कराने के लिए दबाव डालना था। पहले शिकार UK के नागरिक टिम हाउसगो और डेविड मैके थे। इनकी रिहाई के लिए हरकत-उल-अंसार ने अजहर और उसके साथी जिहादी नसरुल्लाह लंगरियाल की रिहाई की मांग की थी।

अक्टूबर 1994 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पूर्व छात्र अहमद उमर सैयद शेख ने नई दिल्ली के डाउनमार्केट पहाड़गंज में एक गेस्ट हाउस से चार ब्रिटिश नागरिकों को अगवा किया। बंधकों को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के पास एक घर में ले जाया गया था। खुफिया अधिकारियों ने 31 अक्टूबर को उन्हें ढूंढ निकाला। गोलीबारी में उत्तर प्रदेश पुलिस के कमांडो अभय सिंह यादव की मौत हो गई। बचाव अभियान से सभी चार बंधक सुरक्षित बाहर निकल आए।

5 जुलाई 1995 को अल-फरान नाम के संदिग्ध संगठन ने पहलगाम से पांच पश्चिमी पर्यटकों को बंधक बना लिया। इनमें से एक नॉर्वेजियन नागरिक हंस क्रिस्टन ऑस्ट्रो का शव कटा हुआ पाया गया। उसके पेट पर "अल-फरान" शब्द उकेरा गया था। सीआईए को तब भी पता था कि अल-फरान हरकत-उल-अंसार का मुखौटा संगठन है। बाकी बंधकों, ब्रिटेन के कीथ मैंगन और पॉल वेल्स, अमेरिका के डोनाल्ड हचिंग्स और जर्मनी के डर्क हसर्ट की 13 दिसंबर 1995 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

ISI से पैसे मिलना कम हुए तो हरकत-उल अंसार ने अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों के साथ संबंध बढ़ाने पर ध्यान दिया। इससे इसने और अधिक अमेरिका विरोधी रवैया अपनाया। CIA की रिपोर्ट में कहा गया कि ISI सहायता पूरी तरह बंद कर देने से “इस समूह के अमेरिका विरोधी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समर्थकों जैसे अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन से पैसे लेने की संभावना बढ़ जाएगी।” यह भी अनुमान लगाया गया था कि हरकत-उल-अंसार 1995 में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश से जुड़ा था।

मसूद अजहर ने किया था जैश-ए-मुहम्मद का गठन

CIA के पास तीन साल पहले विमान अगवा किए जाने की सूचना थी। इसके बाद भी यह घटना नहीं रोकी जा सकी। बंधकों को छुड़ाने के लिए भारत सरकार को मसूद अजहर को जेल से छोड़ना पड़ा। कंधार में रिहाई के बाद अजहर ने हरकत-उल-अंसार के विभिन्न गुटों को एकजुट किया और जैश-ए-मुहम्मद नाम का आतंकी संगठन तैयार किया। आईएसआई ने इस काम में उसकी पूरी मदद की।

यह भी पढ़ें- Kandahar Hijack: पूर्व राजदूत का खुलासा- अल-कायदा नहीं, पाकिस्तान का था हाथ

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