अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान आज, जानिए कब और कैसे होता है चुनाव, इस बार कौन से मुद्दे रहें हावी

अमेरिका के इस चुनाव में सबसे ज्यादा कोरोना को लेकर बहस छिड़ी। जहां ट्रम्प जांच समेत उठाए गए अपने कदमों को ऐतिहासिक बताते रहें, वहीं बिडेन चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प पर महामारी को गंभीरता से ना लेने का आरोप लगा रहे हैं। इसके अलावा बिडेन ने फ्री वैक्सीन का भी वादा किया है।

वॉशिंगटन. अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान है। लेकिन इससे पहले ही अब तक 6 करोड़ 40 लाख से ज्यादा लोग वोट कर चुके हैं। यह संख्या 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में इस अवधि तक हुए मतदान से अधिक है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उन राज्यों में ज्यादा मतदान देखा जा रहा है, जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन के बीच कड़ी टक्कर है। हालांकि, मेल के जरिए हो रहे मतदान की अप्रत्याशित संख्या से नतीजे आने में देरी की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। माना जा रहा है कि वोटों की गिनती में 3 नवंबर से आगे बढ़ सकती है। 

अमेरिका: इन मुद्दों पर हो रहा चुनाव
डोनाल्ड ट्रम्प और डो बिडेन दोनों ही इस बार प्रचार में काफी आक्रामक दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका में इस बार चीन, कोरोना वायरस, वैक्सीन, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, नस्लीय तनाव, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे छाए हुए हैं। 

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कोरोना और वैक्सीन: अमेरिका के इस चुनाव में सबसे ज्यादा कोरोना को लेकर बहस छिड़ी हुई है। जहां ट्रम्प जांच समेत उठाए गए अपने कदमों को ऐतिहासिक बता रहे हैं। ट्रम्प ने जल्द से जल्द वैक्सीन को लेकर भी वादा किया है। वहीं, बिडेन चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प पर महामारी को गंभीरता से ना लेने का आरोप लगा रहे हैं। इसके अलावा बिडेन ने फ्री वैक्सीन का भी वादा किया है। 


प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान ट्रम्प और जो बिडेन।

अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी: कोरोना और लॉकडाउन की वजह से अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर भी संकट आया है। ऐसे में अमेरिकी चुनाव में अर्थव्यवस्था का मुद्दा भी छाया हुआ है। इसके अलावा मार्च में लगे लॉकडाउन के बाद से 2.3 करोड़ अमेरिकी बेरोजगार हो गए। अमेरिका में मार्च और अप्रैल में बेरोजगारी दर 3.5% से बढ़कर 14.7% तक पहुंच गई। जहां ट्रम्प अमेरिकी वोटरों से अपील कर रहे हैं कि वे इसे पटरी पर ला सकते हैं। वहीं, बिडेन इस हालत के लिए ट्रम्प को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। 

नस्लीय तनाव: अमेरिका में मई में पुलिस के हाथों जॉर्ज फ्लॉयड नाम के अश्वेत व्यक्ति की मौत हो गई थी। इसके बाद से अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर्स के आंदोलन शुरू हो गए। अमेरिका में वैसे तो नस्लीय हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। लेकिन अमेरिकी चुनाव से पहले एक बार फिर पूरे विश्व के तमाम देशों में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। अमेरिका में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा में शहरों को भी काफी नुकसान पहुंचा। यही वजह है कि अमेरिका में यह विवाद चुनावी मुद्दा बना हुआ है। 


ट्रम्प चीन के मुद्दे पर काफी आक्रामक नजर आ रहे हैं।

चीन : अमेरिका में चुनावी रैलियों में चीन का मुद्दा भी छाया हुआ है। चीन को लेकर दोनों पार्टियों के नेता काफी आक्रामक नजर आ रहे हैं। जहां ट्रम्प कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। साथ ही वे जो बिडेन पर चीन से गठजोड़ का आरोप लगा रहे हैं। ट्रम्प ने हाल ही में एक रैली में यहां तक कह दिया कि यदि बिडेन जीते तो यह चीन की जीत होगी। वे इस देश की विचारधारा को बदल कर समाजवाद ले आएंगे।

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया से जुड़ी खास बातें- 

1- राष्ट्रपति चुनाव कौन लड़ सकता है?
अमेरिकी संविधान के आर्टिकल 2 के सेक्शन 1 में राष्ट्रपति चुनाव के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। राष्ट्र्रपति उम्मीदवार बनने के लिए मुख्य रूप से किसी भी शख्स को इन तीन शर्तों को पूरा करना होता है। 1- उम्मीदवार का जन्म अमेरिका में हुआ हो। 2- उसकी उम्र 35 साल या उससे अधिक हो। 3- वह पिछले 14 साल से अमेरिका में रह रहा हो।

2- कोई कितने साल तक राष्ट्रपति रह सकता ?
अमेरिका में राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 साल का होता है। वह 2 कार्यकाल तक राष्ट्रपति रह सकता है। 22 वें संविधान संसोधन के मुताबिक, यहां एक व्यक्ति तीसरी बार राष्ट्रपति नहीं चुना जा सकता। हालांकि, युद्ध की स्थिति में अमेरिकी संसद ऐसा मौका दे सकती है। 

3- कैसे चुना जाता है राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार?
अन्य किसी लोकतांत्रिक देश की तरह अमेरिका में भी कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकता है। लेकिन अमेरिका में द्विदलीय व्यवस्था है। यहां सिर्फ रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी है। इन्हीं के मध्य चुनाव होता है। दोनों पार्टियां अपना अपना उम्मीदवार बनाती हैं। हालांकि, उम्मीदवार को चुनने की प्रक्रिया दूसरे देशों की तुलना में काफी लंबी होती है। 

यहां पार्टी के उम्मीदवार के चयन के लिए दो तरह के चुनाव होते हैं। पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकसस। प्राइमरी चुनाव राज्य सरकारों के अंतर्गत कराए जाते हैं। अगर चुनाव खुले तौर पर होते हैं तो इसमें पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा आम जनता भी मतदान कर सकती है। वहीं, बंद रूप से अगर मतदान होता है तो सिर्फ पार्टी के कार्यकर्ता ही वोटिंग करते हैं।

 
पार्टी के उम्मीदवार के चयन के लिए दो तरह के चुनाव होते हैं- पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकसस।

4- क्या है कॉकसस?
अगर कॉकसस की बात करें तो यह पार्टी की तरफ से ही कराए जाते हैं। इसमें पार्टी के समर्थकों का एक कार्यक्रम बुलाया जाता है। इसमें राष्ट्रपति उम्मीदवार अलग अलग मुद्दे पर अपनी राय रखते हैं। जिस उम्मीदवार के पक्ष में ज्यादा लोग हाथ खड़ा करते हैं, वही उम्मीदवार चुना जाता है। हालांकि, अमेरिका के ज्यादातर राज्यों में प्राइमरी के तहत ही उम्मीदवार चुना जाता है। हालांकि, प्राइमरी या कॉकसस में आम लोगों को भाग लेने के लिए पहले पार्टी का कार्यकर्ता बनने के लिए रजिस्टर करना पड़ता है।

उम्मीदवार बनने के लिए भी चाहिए निश्चित समर्थन
प्राइमरी और कॉकसस चुनाव में उम्मीदवार को समर्थन की निश्चित संख्या की जरूरत होती है। तभी वह उम्मीदवार घोषित किया जाता है। मान लिया जाए कि एक पार्टी में 10 लोग राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की रेस में शामिल हैं, तो इनमें से जिसे सबसे ज्यादा समर्थन मिलेगा, वह उम्मीदवार बनेगा। 

उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऐलान
प्राइमरी इलेक्शन के बाद दोनों पार्टियां नेशनल कन्वेंशन बुलाती हैं। ट्रम्प की पार्टी रिपब्लिकन का अगस्त और डेमोक्रेट्स का कन्वेंशन जुलाई में होता है। यहां राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का आधिकारिक ऐलान होता है। इसके बाद वही उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऐलान करता है। 


राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी पत्नी मेलानिया।

अब शुरू होती है चुनाव प्रक्रिया

कन्वेंशन के बाद चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत होती है। अमेरिका में जनता सीधे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए वोट नहीं करती। यह पहले स्थानीय तौर पर इलेक्टर का चुनाव करती है। यह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है। इसके समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहते हैं। इसमें 538 सदस्य होते हैं। ये अलग अलग राज्यों से आते हैं। जनता इन्हें चुनती है, यही राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 से अधिक इलेक्टर्स की जरूरत होती है। जिसे ज्यादा समर्थन मिलता है, वही उम्मीदवार 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेता है। 

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