यूनिवर्सिटीज में प्रवेश के लिए नस्ल और जाति के उपयोग पर बैन, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने छह दशक पुराने कानून को किया खत्म

चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने कहा कि बेहतर इरादा और अच्छे काम के लिए यह सकारात्मक कार्रवाई रही जो 1960 के दशक में लागू की गई थी लेकिन यह हमेशा के लिए नहीं रह सकती। यह दूसरों के लिए असंवैधानिक भेदभाव है।

US Supreme Court big decision: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय प्रवेश में नस्ल और जातीयता के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। गुरुवार को आए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दशकों पुरानी प्रथा को बड़ा झटका लगा जिसने अफ्रीकी-अमेरिकियों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा दिया। एक महिला के गर्भपात के अधिकार की गारंटी को पलटने के एक साल बाद कोर्ट के कंजरवेटिव मेजारिटी ने 1960 के दशक से कानून में स्थापित लिबरल पॉलिसीस को खत्म कर दिया।

चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने कहा कि बेहतर इरादा और अच्छे काम के लिए यह सकारात्मक कार्रवाई रही जो 1960 के दशक में लागू की गई थी लेकिन यह हमेशा के लिए नहीं रह सकती। यह दूसरों के लिए असंवैधानिक भेदभाव है। इस निर्णय से स्कूल एडमिशन्स, बिजनेस और सरकारी नियुक्तियों में विविधता आएगी। रॉबर्ट्स ने लिखा कि किसी भी छात्र के साथ, उसका एक व्यक्ति के रूप में उसके अनुभवों के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए न कि नस्ल के आधार पर उसके साथ व्यवहार किया जाना चाहिए।

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विश्वविद्यालय आवेदक की पृष्ठभूमि पर विचार करने के लिए स्वतंत्र

कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय किसी आवेदक की पृष्ठभूमि पर विचार करने के लिए स्वतंत्र हैं। चाहें वे नस्लवाद का अनुभव करते हुए बड़े हुए हों या अधिक शैक्षणिक रूप से योग्य छात्र रहे हों। लेकिन मुख्य रूप से इस आधार पर निर्णय लेना कि आवेदक श्वेत है, काला है या अन्य है, अपने आप में नस्लीय भेदभाव है। हमारा संवैधानिक इतिहास उस विकल्प को बर्दाश्त नहीं करता है।

जस्टिस सोनिया सोतोमयोर ने बहुमत पर स्थानिक रूप से अलग-थलग समाज की वास्तविकता के प्रति रंग-अंध होने का आरोप लगाया। उन्होंने लिखा कि जाति को नजरअंदाज करने से ऐसे समाज में समानता नहीं आएगी जो नस्लीय रूप से असमान है। जो 1860 के दशक में और फिर 1954 में सच था, वह आज भी सच है: समानता के लिए असमानता की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।

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