WHO ने एक बार फिर HCQ के ट्रायल को मंजूरी दे दी है। पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके ट्रायल पर रोक लगाई थी। मशहूर पत्रिका द लैंसेट ने एक रिपोर्ट में कहा था कि कि क्लोरोक्वीन और HCQ से फायदा मिलने का कोई सबूत नहीं मिला है जिसके बाद WHO ने इस पर रोक लगाई थी।
वॉशिंगटन. कोरोना से जारी जंग के बीच जिस हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा को सबसे कारगर माना जा रहा था, उसके ट्रायल पर पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रोक लगाई थी। जिसके बाद WHO ने एक बार फिर HCQ के ट्रायल को मंजूरी दे दी है। पिछले दिनों मशहूर पत्रिका द लैंसेट ने एक रिपोर्ट में कहा था कि कि क्लोरोक्वीन और HCQ से फायदा मिलने का कोई सबूत नहीं मिला है जिसके बाद WHO ने इस पर रोक लगा दी थी।
भारत ने WHO को लिखा था खत
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने डब्ल्यूएचओ से शिकायत की कि उसने फैसला लेने से पहले भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) से बात करने की भी जहमत नहीं उठाई। सूत्रों के मुताबिक ईमेल में कहा गया, 'ICMR से भी संपर्क नहीं किया गया जो भारत में हाइड्रोक्सिक्लोरोक्वीन पर ट्रायल की अगुवाई कर रहा है।' आईसीएमआर के महानिदेशक (डीजी) डॉ. बलराम भार्गव ने स्पष्ट कहा है कि भारत में कोविड-19 से बचाव के मकसद से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को लेकर अब तक के परीक्षण में किसी भी बड़े दुष्प्रभाव के सबूत नहीं मिले जबकि फायदे के संकेत जरूर मिले।
मृत्युदर बढ़ने का दावा
कई देशों में की गई स्टडीज में इसके साइड-इफेक्ट्स होने की बात सामने आई थी। द लैंसेट ने दावा किया था कि मर्कोलाइड के बिना या उसके साथ भी क्लोरोक्वीइन और HCQ के इस्तेमाल से कोविड-19 मरीजों की मृत्युदर बढ़ जाती है। पत्रिका ने कहा था कि ताजा रिसर्च करीब 15 हजार COVID-19 मरीजों पर किया गया है।
लैंसेट की स्टडी पर सवाल
लैंसेट की स्टडी को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था। कई रीसर्चर्स ने दावा किया था कि लैंसेट ने जिन लोगों पर अपनी स्टडी की वे दरअसल पहले ही गंभीर हालत में पहुंच चुके थे और HCQ के कारण उनकी मौत हुई, इसे साबित नहीं किया जा सकता। साथ ही WHO के इसके ट्रायल पर रोक के फैसले पर सवाल उठाया गया था। रीसर्चर्स का कहना था कि ट्रायल पर रोक लगने से बिना एक्सपेरिमेंट के HCQ को पूरी तरह समझा नहीं जा सकेगा।
ICMR ने किया था यह दावा
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने एक दावा किया था। आईसीएमआर की स्टडी के मुताबिक एचसीक्यू के 6 या ज्यादा डोज लेने वाले 80% हेल्थकेयर वर्कर इन्फेक्शन से बच गए।रिसर्च के मुताबिक एचसीक्यू के 4 डोज लेने के बाद इन्फेक्शन का रिस्क घटने लगता है। लेकिन, बचाव के लिए पीपीई किट और दूसरे उपाय भी जरूरी हैं। हेल्थकेयर वर्कर्स को दो ग्रुप- कोरोना पॉजिटिव और कोरोना निगेटिव में बांटकर ये रिसर्च की गई। पहले ग्रुप में 378 और दूसरे में 373 लोग शामिल थे।
लैंसेट ने शोध के हवाले से क्या कहा था?
लैंसेट ने कहा कि चूंकि रिसर्च में क्लोरोक्वीन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से कोविड-19 मरीजों को फायदा नहीं पहुंचने की बात साबित हो चुकी है, इसलिए अब क्लीनिकल ट्रायल के सिवा इसके इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए। शोधकर्ताओं के हवाले से लैंसेट ने कहा कि रैंडमाइज्ड ट्रायल और उसके नतीजों की जानकारी तुरंत सामने आनी चाहिए। पत्रिका ने शोधकर्ताओं सी फंक-ब्रेंटानो और जे सलेम की टिप्पणी साझा की। उसने लिखा, 'प्राथमिक रिपोर्टों के साथ आए नतीजों से पता चलता है कि क्लोरोक्वीन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को अकेले या फिर अझिथ्रोमाइसिन के साथ खाना लाभदायक नहीं है। इसे खाने से अस्पताल में भर्ती कोविड-19 मरीजों को नुकसान हो सकता है।'
भारत ने हटाया था निर्यात से बैन
WHO के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस एडहोनम ने कहा था कि पहले डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड HCQ के सेफ्टी डेटा की समीक्षा करेगा। बता दें कि HCQ का इस्तेमाल मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। इस दवा का उत्पादन करने वाली सबसे ज्यादा कंपनियां भारत में हैं पिछले महीने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अपील पर भारत ने इस पर से निर्यात का बैन हटा लिया था।
क्या है हाइड्रोक्सिक्लोरोक्वीन?
इस दवा का मुख्य तौर पर इस्तेमाल मलेरिया के उपचार के लिए किया जाता है। इसके अलावा आर्थराइटिस के उपचार के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन दवा उत्पादन करने वाले देशों में से एक है। यह एंटी मलेरिया दवा है जो कई तरह के मलेरिया से लड़ने में सक्षम है। हालांकि यह दवा किस तरह लड़ती है इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।